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केरल में आए दिन हो रही राजनीतिक हत्याओं से एक सवाल उठना लाजिमी है कि भारत जैसे प्रजातांत्रिक देश में क्या असहमति की आवाजें खामोश कर दी जाएंगी? एक तरफ वामपंथी बौद्धिक गिरोह देश में असहिष्णुता की बहस चलाकर मोदी सरकार को घेरने का असफल प्रयास कर रहा है। वहीं दूसरी ओर उनके समान विचारधर्मी दल की केरल की राज्य सरकार के संरक्षण में असहमति की आवाज उठाने वालों को मौत के घाट उतार दिया जा रहा है।
हमारा संविधान अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता तथा अपने विचारों के प्रसार की सबको आजादी देता है।
भारत के विभिन्न राज्यों में भाषाई मतभेद, जातीय मतभेद और राजनीतिक मतभेद हमेशा से रहे हैं। सरकार की नीतियों का विरोध भी होता रहा है। उसके तरीके जनांदोलन, धरना-प्रदर्शन, नारेबाजी, बाजार बंद कराना जैसे विविध प्रकल्प राजनीतिक दल करते रहे हैं। अभी हाल में ही भारत में हुए राजनीतिक परिवर्तन के तहत केंद्र सहित कई राज्यों में भारतीय जनता पार्टी की सरकारें जनता के बहुमत से सत्ता में आई हैं। जब यह सत्ता परिवर्तन हो रहा था तो हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवी इसे पचा नहीं पा रहे थे। और वे छोटी सी बात को तिल का ताड़ बनाने का काम कर रहे थे। उनकी इस मुहिम में मीडिया का एक बड़ा वर्ग शामिल था। हम देखते हैं कि जहां पर भाजपा शासित राज्य हैं वहां विरोधी दलों के साथ एक लोकतांत्रिक व्यवहार कायम है। लेकिन केरल में जिस तरह से राजनीतिक विरोधियों को कुचलने और समाप्त कर डालने की हद तक जाकर कुचक्र रचे जा रहे हैं, वह आश्चर्य में डालते हैं। केरल में पिछले 13 महीने में दो दर्जन से अधिक स्वयंसेवकों की हत्याएं हो चुकी हैं। यह आंकड़ा पुलिस ने बताया है। जबकि चश्मदीद लोग इससे भी अधिक बर्बरता की कहानी बताते हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सहसरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने केरल में हो रही आरएसएस कार्यकर्ताओं की हत्याओं का आरोप सीपीएम पर लगाया है। उनका कहना है कि जिस-जिस क्षेत्र में सरकार की नीतियों का हमारे कार्यकर्ता लोकतांत्रिक ढंग से विरोध करते हैं, उन्हें या तो पुलिस थानों में अकारण बंद कर दिया जाता है और बाद में झूठे मुकदमे लादकर अपराधी घोषित कर दिया जाता है। कई जगहों पर स्वयंसेवकों को घरों से खींचकर गोलियों से उड़ाया जा रहा है। यह तांडव राज्य सरकार के संरक्षण में वामपंथी कार्यकर्ता कर रहे हैं। चूंकि शासन-सरकार का वामपंथियों को संरक्षण प्राप्त है इसलिए उनके खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं हो रही है। केरल की इन रक्तरंजित घटनाओं को लेकर पिछले दिनों लोकसभा में भी जमकर हंगामा हुआ। जबकि केंद्र सरकार ने केरल के मुख्यमंत्री से इस संबंध में जवाब तलब किया है। परंतु आरएसएस का मानना है कि राज्य सरकार के इशारे पर अफसर सही जानकारी केंद्र को नहीं भेजते हैं।
केरल में जो घटनाएं हो रही हैं वे कम्युनिस्टों की तालिबानी मानसिकता का परिचायक हैं ये पूरी तरह लक्षित और सुनियोजित हमले हैं। इन हमलों में मुख्य रूप से दलित स्वयंसेवकों को निशाना बनाया गया है। केरल में आरएसएस के बढ़ते प्रभाव और वामपंथियों की खिसकती जमीन के चलते वामपंथी हिंसक हो रहे हैं। वे आरएसएस सहित दूसरे विरोधियों पर भी हिंसक हमले कर रहे हैं। पर न जाने किन राजनीतिक कारणों से कांग्रेस वहां खामोश है, जबकि उनके अपने अनेक कार्यकर्ताओं पर जानलेवा हमले हुए हैं और कई की जानें भी गयी हैं। एक तरफ लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा का आलाप और दूसरी तरफ विरोधी विचारों को खामोश कर देने की खूनी जंग भारतीय वामपंथियों के असली चेहरे को उजागर करती है। यह बात बताती है कि कैसे विपक्ष में रहने पर उनके सुर अलग और सत्ता में होने पर उनका आचरण क्या होता है।
निर्दोष संघ कार्यकर्ता तो किसी राजनीतिक दल का हिस्सा भी नहीं हैं किंतु फिर भी उनके साथ यह आचरण बताता है कि वामपंथी किस तरह हिंदू विरोधी रूख अख्तियार किए हुए हैं। राजनीति के क्षेत्र में केरल एक ऐसा उदाहरण है जिसकी बबर्रता की मिसाल मिलना कठिन है। एक सुशिक्षित राज्य होने के बाद भी वहां के मुख्य और सत्तारूढ़ दल का आचरण आश्चर्य चकित करता है। भाजपा ने केरल की घटनाओं पर चिंता जताते हुए एनआईए या सीबीआई जांच की मांग की है।
हमें यह देखना होगा कि हम ऐसी घटनाओं पर किस तरह चयनित दृष्टिकोण अपना रहे हैं। अल्पसंख्यकों पर होने वाले हमलों पर हमारी पीड़ा छलक पड़ती है किंतु जब केरल में किस दलित हिंदु युवक के साथ यही घटना होती है हमारी राजनीति और मीडिया, खामोशी की चादर ओढ़ लेते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन के कार्यकर्ताओं के साथ हो रहे बर्बर आचरण पर किसी को कोई दर्द नहीं है। हमें देखना होगा कि आखिर हम कैसा लोकतंत्र बना रहे हैं। हम किस तरह विरोधी विचारों को नष्ट कर देना चाहते हैं। आखिर इससे हमें क्या हासिल हो रहा है। क्या राजनीति एक मनुष्य की जान से बड़ी है। क्या संघ के लोगों को केरल में काम करने का अधिकार नहीं है।
आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबोले ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में जो वीडियो जारी किए हैं वह बताते हैं कि वामपंथी किस दुष्टता और अमानवीयता पर आमादा हैं और लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन कर रहे हैं। किस तरह वे गांवों में जूलूस निकाल कर संघ के स्वयंसेवकों को कुत्ते की औलाद कहकर नारेबाजी कर रहे हैं। वे धमकी भरी भाषा में नारे लगा रहे हैं कि अगर संघ में रहना है तो अपनी मां से कहो वे तुम्हें भूल जाएं। आखिर यह किस राजनीतिक दल की सोच और भाषा है? आखिर क्या वामपंथियों का वैचारिक और सांगठनिक आधार दरक गया है जो उन्हें भारतीय लोकतंत्र में रहते हुए इस भाषा का इस्तेमाल करना पड़ रहा है या यह उनका नैसर्गिक चरित्र है। कारण जो भी हों लोकतांत्रिक मूल्यों में आस्था रखने वाली हर आवाज को आज केरल में आरएसएस के साथ खड़े होकर इन निर्मम हत्याओं की निंदा करनी चाहिए।