सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जनवरी 2016 से जनवरी 2018 के बीच राज्य में 57,000 बच्चों ने कुपोषण के कारण दम तोड़ दिया था. कुपोषण की वजह से ही श्योपुर ज़िले को भारत का इथोपिया कहा जाता है। वर्ष 2017 में अहमदाबाद के प्रमुख सदर अस्पताल में सिर्फ तीन दिन में 18 नवजात शिशुओं की मौत के बाद इसके कारणों को लेकर पूरे देश में चर्चा होने लगी, जिसमें एक बात सामने आई कि उनमें से ज्यादातर बच्चे सामान्य से कम वजन के थे। इस तरह वे कमजोर भी थे।
इससे एक बात यह उजागर हुई कि उद्योग के मामले में देश में दूसरा स्थान और प्रति व्यक्ति आय में पांचवां स्थान रखने वाले राज्य गुजरात में शिशु-मृत्यु दर व कुपोषण की तस्वीर काफी खराब है। शिशु-मृत्यु दर के मामले में इसका स्थान देश के 29 राज्यों में 17वां है और पांच साल से कम उम्र के सामान्य से कम वजन के बच्चों की बात करें तो इसमें गुजरात 25वें नंबर पर आता है। नमूना पंजीयन प्रणाली सांख्यिकीय रिपोर्ट-2015 के आंकड़ों के मुताबकि, गुजरात में 1,000 में 33 बच्चों की मौत जन्म के दौरान हो जाती है। बच्चों की मृत्यु का यह आंकड़ा केरल में प्रति हजार 12, तमिलनाडु में 19, महाराष्ट्र में 21 और पंजाब में 23 है।
उपलब्ध हाल के आंकड़ों, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2015-16, के मुताबिक गुजरात में 39 फीसदी बच्चों का वजन सामान्य से कम है, जबकि इस मामले में राष्ट्रीय औसत 35 फीसदी है। वहीं, केरल में 16 फीसदी बच्चे सामान्य से कम वजन के हैं। पंजाब में यह आंकड़ा 21 फीसदी, तमिलनाडु में 23 फीसदी और महाराष्ट्र में 36 फीसदी है। सरकारी आंकड़ों की बात करें तो सकल मूल्यवर्धित औद्योगिक उत्पाद के मामले में गुजरात देश में दूसरे और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के लिहाज से चौथे स्थान पर आता है। प्रति व्यक्ति आय के मामले में गुजरात का स्थान पांचवां है। सामान्य से कम वजन के बच्चों के मामले में गुजरात सिर्फ उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और झारखंड से ऊपर है।
वहीं, छोटे-छोटे राज्यों, जैसे- मिजोरम और मणिपुर सामान्य से कम वजन के मामले में क्रमश: 11.9 फीसदी और 13.6 फीसदी के साथ गुजरात से बेहतर स्थिति में हैं। बड़े राज्य जैसे पंजाब और तमिलनाडु में सामान्य से कम वजन के बच्चे क्रमश: 21 फीसदी और 23 फीसदी पाए जाते हैं। आर्थिक संकेतकों की तुलना में गुजरात में शिशु-मृत्यु दर यानी आईएमआर की स्थिति काफी खराब है। वहीं, गुजरात में प्रति व्यक्ति आय 122,502 रुपये सालाना है, जबकि महाराष्ट्र में 21,514 रुपये और केरल में यह आंकड़ा 119,763 रुपये है। हालांकि पांच साल से कम उम्र के बच्चों का वजन, शिशु मृत्यु दर व पांच साल से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु के तीन पैरामीटर को लेकर शिशु स्वास्थ्य संकेतकों को देखें तो गुजरात इन राज्यों से पीछे है।
जम्मू एवं कश्मीर में प्रति व्यक्ति आय गुजरात के मुकाबले आधी यानी 60,171 रुपये सालाना है, जबकि वहां शिशु मृत्यु दर 26 प्रति हजार और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मौत के आंकड़े 28 प्रति हजार हैं। वर्ष 2015 में देशभर में पांच साल से कम उम्र के तकरीबन 10.8 लाख बच्चों की मौत हो गई थी। यानी 2,959 मौतें प्रति दिन। इसे और सरल तरीके से कहें तो हर मिनट दो बच्चों की मौत हो रही है, जिनमें ज्यादातर बच्चों की मौत जिन रोगों व वजहों से हुई, उनका निवारण व उपचार संभव था। पिछले 41 सालों में भारत में शिशु मृत्यु दर में 68 फीसदी की गिरावट आई है।
1975 में प्रति हजार 130 बच्चों की मौत होती थी, जबकि 2015-16 में यह घटकर महज 41 रह गई। हालांकि अभी भी इस मामले में स्थिति बहुत खराब है और भारत अपने पड़ोसी देशों बांग्लादेश और नेपाल से पीछे है, जहां यह दर क्रमश: 31 व 29 प्रति हजार है। सरकारी अस्पतालों में बच्चों की मौत राष्ट्रव्यापी मसला है, जोकि भारत के जनस्वास्थ्य सेवा प्रणाली की गंभीर समस्याओं को उजागर करती है। वर्ष 2017 में, झारखंड के जमशेदपुर स्थित महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में 30 दिनों में 52 बच्चों की मौत हो गई। भारत में कुपोषण की यह तस्वीर कोई नई नहीं है, अतः इससे निजात पाने हेतु शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, पोषाहार को दिशा देने के लिए सकारात्मक कदम उठाने की जरूरत।