विगत दिनों दो अलग अलग निजी स्कूलों में घटित घटनाओं ने संपूर्ण देश को झकझोर कर रख दिया है। पहली घटना हरियाणा में गुरूग्राम के रेयान इंटरनेशनल स्कूल की हैं , दूसरी कक्षा में पढऩे वाले छात्र प्रद्युम्न की हत्या उसी स्कूल के बस कंडक्टर ने यौन उत्पीडऩ की कोशिश के दौरान उसी स्कूल के टॉयलेट में गला रेत कर कर दी।
हालांकि पुलिस ने आनन फानन में स्कूल परिसर से ही उक्त कंडक्टर को गिरफ्तार कर लिया लेकिन सबसे दुखद है कि उस टॉयलेट के सामने लगा सीसी टीवी कैमरा खराब पड़ा था। ऐसी हालात में इतने बड़े स्कूल की सुरक्षा पर कई सवाल खड़े होते हैं। अगर बच्चों की सुरक्षा हेतु सीसीटीवी लगाए गए हैं तो उसका खराब होना क्या बच्चों की सुरक्षा से समझौता करना नहीं है ? एक बस का कंडक्टर स्कूल के परिसर के भीतर क्यों और कैसे आया, वो भी तब जब वो सिर्फ पिछले आठ महीने से कार्यरत था। बस कंडक्टर चाकू जैसे हथियार लेकर स्कूल के परिसर में कैसे दाखिल हो सका? क्या इतने बड़े स्कूल परिसर में कोई जांच व्यवस्था नहीं है, वो भी तब जब देश में आए दिन आतंकवादी घटना घटित होती रहती हैं। कंडक्टर ने खुद स्वीकारा कि वह नित्य दिन शराब पीता है। तो क्या ऐसे लोग के भरोसे स्कूल प्रशासन को बच्चों को छोडऩा चाहिए ? इन सबसे बड़ा सवाल यह है कि कि इतने बड़े स्कूल में किसी ने प्रद्युम्न को टॉयलेट में न जाते देखा और न ही उक्त कंडक्टर को साथ घुसते देखा, यह कई सवाल खड़े करता है।
दूसरी घटना इस घटना के ठीक एक दिन बाद दिल्ली के शाहदरा स्थित टैगोर पब्लिक स्कूल में घटित हुई जब एक 5 साल की बच्ची को स्कूल के चपरासी ने ही स्कूल परिसर के एक खाली कमरा में ले जाकर न सिर्फ दुष्कर्म किया बल्कि धमकी भी दी। यह दूसरी घटना भी स्कूल की सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े करती है। स्कूल का एक चपरासी कैसे स्कूल के बच्ची के साथ स्कूल परिसर में घूमता हुआ उसे किसी खाली कमरे में ले जाता है, किसी को कानों कान खबर तक नहीं होती है और वह दुष्कर्म करने में सफल हो जाता है। अगर स्कूल का कोई कमरा खाली था तो उसे बंद कर के क्यों नहीं रखा गया?
दुष्कर्म करने वाला चपरासी उसी स्कूल में सुरक्षा गार्ड की भी नौकरी कई वर्षों से करता रहा था। ऐसे में यह भी जांच का विषय है कि उसने पहले भी तो कभी ऐसा नहीं किया या करता रहा है क्योंकि इतने छोटे बच्चों को धमकी मिलने के बाद मुँह खोलना या किसी से अपनी परेशानी साझा करना भी बहुत मुश्किल होता है। सवाल यह भी है कि एक ही स्कूल में कार्यरत सुरक्षा कर्मी, चपरासी की नौकरी पर क्यों रख लिया जाता है? और सबसे बड़ा सवाल कि अभिभावकों से मोटी फीस वसूलने वाले स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था का मापदंड क्या है ?
सवाल तो सरकार द्वारा उठाये गए सुरक्षा व्यवस्था पर भी उठता है। क्या सरकार सभी सरकारी, गैरसरकारी स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था का नियमित ऑडिट करवाती है? क्या स्कूल को ऐसा निर्देश है कि वो सुरक्षा व्यवस्था हेतु अनधिकृत सुरक्षा एजेंसियों की ही मदद ले और अगर ऐसा है तो क्या इसकी नियमित जांच होती है? स्कूल में भर्ती किए गए कर्मचारी का पुलिस सत्यापन किया जाता है या नहीं? और सबसे बड़ा सवाल क्या सभी सरकारी गैर-सरकारी स्कूलों में सीसी टीवी कैमरा अनिवार्य नहीं कर देना चाहिए?
अगर सिर्फ सुरक्षा व्यवस्था की बात करे चाहे वो सरकार की हो, पुलिस की हो, और स्कूल प्रशासन की ही क्यों न हो इन सभी से चूक की घटनाएँ निरंतर हो रही है और बढ़ती ही जा रही है इनकी कार्य शैली और सुरक्षा व्यवस्था पर तो सवाल हैं ही लेकिन एक सवाल जो सबसे अधिक सालता है कि हमारा समाज किस दिशा में बढ़ रहा है? हम कैसे लोगों और समाज के बीच जी रहे हैं ? यौन उत्कंठा हेतु बढ़ती मानसिक विकृति, ऐसी घटनाएं अगर नहीं थमी तो सामाजिक संरचना ही धराशायी हो जाएगी।
यौन उत्पीडऩ की घटनाएं सिर्फ स्कूल, कॉलेज, बस ऑटो ट्रेन तक सीमित नहीं हैं। बच्चे अपने घर परिवार में अपने ही रिश्तेदारों से, आस पड़ोस से और वैसे सभी स्थानों और लोगों के बीच जहाँ वे सबसे अधिक सुरक्षित महसूस करते है या यूँ कहें कि सबसे अधिक सुरक्षित महसूस करना चाहिए, वहाँ भी यौन उत्पीडऩ के शिकार हो रहे हैं। कुछ खबरें जरूर मीडिया से हम तक पहुँच पा रही है लेकिन अधिकतर चारदीवारी में दफन हो जाती हैं तो सवाल यह भी है कि क्या हमें अपने ही समाज में जो यौन अपराध की विकृति पनप रही है, उसके निराकरण पर भी विचार नहीं करना चाहिए?
जहाँ तक मुझे इस समस्या का निराकरण समझ आता है, या तो समाज में रहने वाले एक एक मनुष्य का मानवीकरण हो या फिर मनुष्य के समाज में ही भेष बदलकर रह रहे अमानुष लोगों के साथ कानून अमानवीय व्यवहार करे और सजा का प्रावधान भी अमानवीय ही हो क्योंकि ऐसी घटनाएं सुरक्षा व्यवस्था की चूक से तो घटित होती ही हैं लेकिन इसका मूल कारण समाज में निरंतर बढ़ रही यौन अपराध की मानसिक विकृति ही है।
हमारी मुश्किल यह है कि आज हम और हमारा समाज जिस दिशा में बढ़ चला है, एक – एक मनुष्य का मानवीकरण असंभव ही दिखता है और इतिहास खंगालें तो ऐसा पहले भी कभी नहीं हुआ। ऐसे में कानूनी रोक थाम और कानून का खौफ ऐसी घटनाओं पर लगाम लगा सकता है। तो बात विचारणीय यह है कि क्या अब अमानवीय कानूनी प्रावधान का वक्त आ गया है ताकि सजा ऐसी हो कि अपराधी और समाज के लिए उदाहरण बन जाए क्योंकि आजीवन कारावास और फांसी की सजा भी ऐसी घटनाओं पर लगाम लगाने पर नाकाफी साबित हो रहे हैं।
लेखक – अमित कुमार अम्बष्ट