With Uttam Hindu News Source

भारत-जापान के सम्बन्ध

भारत और जापान ने वैश्विक एवं द्विपक्षीय रिश्तों को और मजबूत बनाने की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए नागर विमानन, कारोबार, शिक्षा, विज्ञान एवं औद्योगिक, खेल समेत विभिन्न क्षेत्रों में 15 समझौते किए हैं। इन समझौतों के साथ ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र में आपसी सहयोग को और मजबूत करने पर भी सहमति जताई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि दोनों देशों के बीच विशेष रणनीतिक और वैश्विक सांझेदारी की संभावनाएं केवल द्विपक्षीय और क्षेत्रीय स्तर तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि वैश्विक मुद्दों पर भी हमारे बीच करीबी सहयोग है। पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए दोनों देशों ने आतंकवादियों की सुरक्षित पनाहगाहों और ढांचे को नेस्तानाबूद करने, आतंकवादियों के नेटवर्क और वित्तीय माध्यमों को खत्म करने और आतंकवादियों की सीमा पार गतिविधियों को रोकने के लिए सभी देशों से मिलकर काम करने का आह्वान किया।

दोनों प्रधानमंत्रियों ने पाकिस्तन से मुंबई और पठानकोट हमलों में शामिल आतंकवादियों को सजा दिलाने का आह्वान किया। भारत और जापान के बीच उड्डयन क्षेत्र में हुए समझौते के मुताबिक उनकी विमानन कंपनियां दोनों देशों के बीच असीमित संख्या में उड़ानों का परिचालन कर सकेंगी। यह समझौता राष्ट्रीय नागर विमानन नीति, 2016 के तहत किया गया है जिसके तहत सरकार को दक्षेस देशों के साथ पारस्परिक आधार पर ओपन स्काई हवाई सेवा समझौता करने का अधिकार मिलता है। दोनों देशों ने सतत आर्थिक वृद्धि के लिए नियम आधारित बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की जोरदार वकालत करते हुए संरक्षणवाद के विरोध को लेकर प्रतिबद्धता जताई। मोदी और आबे की वार्ता के बाद जारी संयुक्त बयान के मुताबिक अनुचित व्यापार व्यवहार सहित संरक्षणवादी गतिविधियों का विरोध करने की प्रतिबद्धता जताई। उसके साथ ही उन्होंने व्यापार में विकृति पैदा करने वाले उपायों को हटाने की जरूरत को भी रेखांकित किया।

साथ ही उन्होंने विश्व व्यापार संगठन के 11वें मंत्री स्तरीय सम्मेलन को सफल बनाने तथा बाली तथा नैरोबी की मंत्रीस्तरीय बैठकों के फैसलों के कार्यान्वयन के लिए मिलकर काम करने की अपनी प्रतिबद्धता को दोहराया। दोनों नेताओं ने साथ ही डब्ल्यूटीओ के कारोबारी सुगतमा समझौते के सतत कार्यान्वयन का फैसला किया। जापान ने एशिया प्रशांत आर्थिक सहयोग (एपीईसी) में भारत की सदस्यता के लिए अपने समर्थन को दोहराया।

गौरतलब है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमत्री शिंजो आबे ने अहमदाबाद और मुंबई के बीच प्रस्तावित बुलेट ट्रेन की नींव रखते हुए भी एक-दूसरे को मित्र कहा था। भारत-जापान के मजबूत होते रिश्तों को लेकर चीन चिंतित है। चीन के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता हुआ चुनयिंग ने कहा कि हम साफ कह देना चाहेंगे कि भारत-चीन सीमा पूरी तरह से तय नहीं हुई है और ईस्ट सैक्शन विवादित है। हम बातचीत के जरिए हल खोजने का प्रयास कर रहे हैं, जो दोनों पार्टी को स्वीकार्य हो। ऐसे में हम भारत और दूसरी पार्टियों से अपेक्षा करेंगे कि वह इस बात पर ध्यान दे और कोई भी तीसरी पार्टी इसमें दखल न दे। हुआ ने आगे कहा कि भारत और जापान दोनों ही एशिया में बड़े महत्वपूर्ण देश हैं। ऐेसे में हम आशा करते हैं कि दोनों देशों के रिश्तों में सामान्य विकास क्षेत्रीय स्थिरता और विकास में अहम रोल निभाएगा। इससे पहले चीन ने कहा था कि क्षेत्रीय देशों को गठजोड़ बनाने की बजाय सांझेदारी के वास्ते काम करना चाहिए। हालांकि चीन ने उम्मीद जताई कि भारत और जापान के बीच बढ़ते संबंध शांति और स्थिरता के लिए सहायक होंगे।

भारत और जापान दोनों ही मिलकर चीन द्वारा दी गई चेतावनियों और बढ़ाये जा रहे दबाव का सामना कर सकते हैं। जापान और भारत दोनों का जितना रक्षा बजट है, चीन अकेले का उससे दोगुना है। यही कारण है कि चीन हिन्द प्रशांत सागर तथा भारत के साथ लगती सीमाओं पर दबाव बनाये रखना चाहता है। बुलेट ट्रेन समझौता बेशक एक बड़ा समझौता है लेकिन भारत जापान के बीच मजबूत होते रिश्ते विश्व की राजनीति को भी प्रभावित करने की क्षमता रखते हैं। चीन और पाकिस्तान जिस तरह एक-दूसरे की पीठ थपथपाते हैं तथा आतंकवाद को समर्थन दे रहे हैं, इस बात को ध्यान में रखते हुए भारत और जापान का निकट आना समय की मांग ही थी। अमेरिका के जापान और भारत के साथ मजबूत होते संबंध चीन, पाक और उत्तर कोरिया जैसे नकारात्मक सोच वाले देशों को भी आत्मचिंतन करने के लिए मजबूर कर रहे हैं।

विश्व स्तर पर शक्ति संतुलन के लिए भी भारत और जापान के रिश्तों में आ रही मजबूती लाभदायक ही है। वर्तमान आर्थिक, राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए कहा जा सकता है कि भारत और जापान एक-दूसरे के पूरक देश ही कहे जा सकते हैं। जापान के पास तकनीक है तो भारत के पास बड़ा बाजार और तकनीक का लाभ लेने की क्षमता भी है। ऐशिया क्षेत्र में शक्ति संतुलन को बनाये रखने के लिए भी भारत-जापान के रिश्तों की मजबूती आवश्यक है।

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