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Text of PM’s Speech at the birth centenary celebrations of Nanaji Deshmukh at IARI

आज लोकनायक जयप्रकाश जी की जन्‍म जंयती का अवसर है और आज ही के दिन लोकनायक जयप्रकाश के निकटस्‍थ साथी श्रीमान नानाजी देशमुख की जन्‍म जयंती शताब्‍दी का भी अवसर है। इन दोनों महापुरूषों ने अपने जीवनकाल में एक ऐसे संकल्‍प का परिचय कराया और जिस संकल्‍प के लिए उन्‍होंने स्‍वयं को झोंक दिया और सिद्धि प्राप्‍त करने तक वे जीवन का पल-पल मातृभूमि के लिए देशवासियों के कल्‍याण के लिए अपने संकल्‍प को साकार करने के लिए वे जीवन भर जुटे रहे। लोकनायक जयप्रकाश जी आजादी के आंदोलन में युवाओं की प्रेरणा रहे थे। 1942 में हिंद छोड़ो यह आंदोलन अपनी तीव्रता पर पहुंचा। महात्‍मा गांधी, सरदार पटेल समेत सभी राष्‍ट्र पुरूष अंग्रेज सल्‍तनत ने जेलो में बंद कर दिया और ऐसे समय जयप्रकाश जी लोहिया जी, ऐसे युवकों ने आगे आ करके उस आंदोलन की बागडोर संभाली थी और उस कालखंड की युवा पीढ़ी के मन में वो प्रेरणा का स्रोत बन गए। आजादी के उस कालखंड में जयप्रकाश जी लोकनायक के रूप में युवा हृदयों के लिए एक प्रेरणा का केंद्र बन गए, लेकिन देश आजाद होने के बाद बहुत बड़े-बड़े लोग सत्‍ता की गलियारों में अपनी जगह ढूंढते नजर आते थे। यह जयप्रकाश नारायण थे, जिन्‍होंने सत्‍ता की राजनीति से अपने को दूर रखा और आजादी के बाद जयप्रकाश जी और उनकी पत्‍नी श्रीमति प्रभादेवी जी ने ग्रामोत्‍थान के मार्ग को चुना, लोक कल्‍याण के मार्ग को चुना।

नाना जी देशमुख, देश उनको ज्‍यादा जानता नहीं था। देश के लिए उन्‍होंने अपना जीवन दे दिया था, लेकिन जब जयप्रकाश जी भ्रष्‍टाचार के खिलाफ जंग लड़ रहे थे, आपातकाल के पूर्व फिर एक बार जयप्रकाश जी देश में पनप रहे भ्रष्‍टाचार, उच्‍च पदों पर पले-बढ़े भ्रष्‍टाचार उसके खिलाफ दुखी हो करके विद्यार्थी आंदोलन के साथ जुड़ गए थे। गुजरात के नौजवान आंदोलन से प्रेरणा ले करके जयप्रकाश जी एक बार फिर मैदान में आ गए और जयप्रकाश जी के आने के बाद दिल्‍ली की सल्‍तनत में खलबली मच गई। जयप्रकाश जी को रोकने के लिए क्‍या-क्‍या किया जा सकता है उसके लिए षडयंत्र होते थे। और पटना में एक बार ऐसी स्थिति आई कि जयप्रकाश जी के ऊपर एक सार्वजनिक कार्यक्रम में जब मार्च निकल रही थी, जयप्रकाश जी पर बहुत बड़ा हमला हुआ। और उस समय उनके बगल में नानाजी देशमुख खड़े थे। नानाजी ने अपने हाथों पर वो मृत्‍यु के रूप में आए हुए प्रहार को झेल लिया। उनके हाथ की हड्डिया टूट गई, लेकिन जयप्रकाश जी को चोट से उन्‍होंने बचा लिया और वो एक ऐसी घटना थी कि देश का ध्‍यान नानाजी देशमुख की तरफ गया। नानाजी देशमुख जीवनभर देश के लिए जिये। उन्‍होंने ऐसे couple तैयार किए दीनदयाल रिसर्च इंस्टिट्यूट के माध्‍यम से देश के लिए जीना सीखो, देश के लिए कुछ करके रहो, इस मंत्र के साथ युवा दंपतियों को उन्‍होंने निमंत्रित किया। सैकड़ों की तादाद में ऐसे युवा दंपति आए आगे और उनको उन्‍होंने ग्राम विकास के काम में लगाया। जब मुरार जी भाई प्रधानमंत्री थे। देश में जनता पार्टी का शासन था, नानाजी देशमुख को मंत्रिपरिषद के लिए आमंत्रित किया गया। जय प्रकाश के कदमों पर ही नानाजी ने भी मंत्रिपरिषद में जुड़ने से विनम्रता पूर्वक इनकार किया और स्‍वयं को राजनीति जीवन से निवृत्‍त करके 60 साल की उम्र के बाद वे जब तक जीवित रहे, करीब साढ़े तीन दशक तक उन्‍होंने अपना जीवन चित्रकूट को केंद्र बिंदु बना करके, गोंडा को केंद्र बिंदु बना करके ग्रामीण विकास के लिए खपा दिया।

आज मुझे खुशी है कि नानाजी के जन्‍मशती के अवसर पर भारत सरकार इन महापुरूषों के सपनों के आधार पर और महात्‍मा गांधी ने जो रास्‍ता दिखाया उस रास्‍ते पर ग्रामीण विकास की दिशा में हम कैसे आगे बढ़ें हमारे गांव आत्‍मनिर्भर कैसे बने, हमारे गांव गरीबी से मुक्‍त कैसे बने, हमारे गांव बीमारी से मुक्‍त कैसे बने, हमारे गांव जिसमें आज भी जातिवाद का जहर गांव को बिखेर देता है, गांव के सपनों को चूर-चूर कर देता है, उस जातिवादी भावनाओं से ऊपर उठ करके गांव एक समृद्ध गांव बने, सबको जोड़ने वाला गांव बने और सब मिल करके गांव के कल्‍याण के लिए संकल्‍प करे। उस प्रकार के गांव के विकास को जन भागीदारी से आगे बढ़ाने की दिशा में भारत सरकार अनेक कदम उठा रही है।

आज मुझे यहां पर देश के ग्रामीण जीवन के लिए सोचने वाले, ग्रामीण जीवन के लिए योगदान देने वाले, ग्रामीण अर्थकारण का, ग्रमीण कृषि जीवन का ऐसे भिन्‍न-भिन्‍न विषयों पर जिनकी महारथ है, ऐसे देश के तीन सौ से ज्‍यादा लोग कल पूरा दिन बैठे, अलग-अलग गुटों में बैठे, आधुनिक संदर्भ में गांव का विकास कैसे हो, उसका विचार-विमर्श किया और पूरा दिनभर इन अनुभवी लोगों ने जो मंथन किया है। उससे जो अमृत निकला है, आज अभी एक वीडियो के माध्‍यम से उसे प्रस्‍तुत करने का भी प्रयास हुआ। लेकिन मैं इन सब महानुभावों को विश्‍वास दिलाता हूं कि आपने जो विचार-विमर्श किया है, मंथन किया है और जो बिंदु छांट करके आपने निकाले हैं भारत सरकार उसको गौर करेगी गंभीरता से लेगी। और उसमें से जितने करणीय मुद्दे हैं, reference points हैं उसको भारत सरकार की योजनाओं में समाहित करते हुए कई वर्षों के बाद इतने बड़े फोरम में भारत के ग्रामीण जीवन के विषय में चिंतन और चर्चा हुई है। देश के हर कोने से लोग आए हैं। अलग-अलग इलाके की प्रकृति अलग है, वहां की समस्‍याएं अलग हैं, वहां के संसाधन अलग है, वहां की आवश्‍यकताएं अलग हैं। रूचि, प्रवृति, प्रकृति के अनुसार गांव का विकास जड़ों से जुड़ा हुआ होगा तो वो sustainable growth के लिए गारंटी होगा। बाहर से थोपी हुई चीजें ग्रामीण जीवन के अंदर ज्‍यादा समय तक foreign element के रूप में संघर्ष में बीत जाती है और कभी-कभी ग्रामीण जीवन बाहर से थोपी हुई चीजों को स्‍वीकार करने के लिए साहस नहीं जुटा पाता है। और इसलिए हमारा प्रयास यह है कि गांव की अपनी जो शक्ति है, गांव का अपना जो सामर्थ्‍य है सबसे पहले उसी को जोड़ते हुए विकास का मॉडल बनाएंगे जो गांव के लोगों के अनुकूल होता है, परिचित होता है। उसमें थोड़े modification की जरूरत होती है। इसके लिए वैज्ञानिक तरीके से आर्थिक दृष्टि से टेक्‍नोलॉजी के दृष्टि से एक support system की requirement होती है। और उसको हम बल दे करके चलते हैं, तो गांव आसानी से उससे जुड़ जाता है। गांव उस विकास यात्रा को अपने कंधे पर उठा लेता है और sustainable विकास की वो एक गारंटी बन जाता है। आपने जो चिंतन-मनन किया है वो धरती के अनुभव के आधार पर किया है और अनुभव के आधार पर की हुई चीजें.. मुझे विश्‍वास है कि आने वाले दिनों में ग्रामीण विकास को जिस तेजी से हम लेना चाहते हैं। एक बात हमें समझनी होगी हम विकास करना चाहे, इतने से बात पूरी नहीं होती, हम अच्‍छा करना चाहे इतने से बात नहीं पूरी होती है, अगर हम चीजों को समय-सीमा में करे। हम हमारी योजनाओं को जो लाभार्थी है, targeted group हैं उसके लिए शत प्रतिशत लागू करे। योजना जिस मिजाज से शुरू की गई, जिस भूमि पर शुरू की गई, उसमें delusion न आए diversion न आए और उसको लागू करने का समय-सीमा में प्रयास करे और वो भी output आधारित नहीं, outcome आधारित हो। सिर्फ हमने इतना बजट खर्च दिया, वो नहीं। इस बजट का यह हमारा लक्ष्‍य था, यह हमने परिपूर्ण किया अगर इस प्रकार से हम एक comprehensive प्रयास करेंगे और समय-सीमा में करेंगे तो मुझे विश्‍वास है कि 70 साल में ग्रामीण विकास की जो गति रही है। 2022 आजादी के 75 साल मनाएंगे, तब हमारी विकास की गति इतनी तेज होगी कि जो 70 साल से सपने संजो करके बैठा हुआ मेरा ग्रामीण व्‍यक्ति है, उसकी जिदंगी को भी बदलाव ला सकता है। आज गांव का नागरिक भी शहर की बराबरी की जिंदगी जीना चाहता है, जो सुविधा शहर को उपलब्‍ध है, वो सुविधा गांव को भी उपलब्‍ध होनी चाहिए। अगर शहर में बिजली जगमगाती है, तो गांव में भी बिजली जगमगानी चाहिए, अगर शहर के लोग मन चाहे तब टीवी देख सकते हैं तो गांव के लोग भी देख सकें, अगर शहर का बच्‍चा स्‍कूल की लेबोरेटरी में जा करके प्रयोग कर सकता है तो गांव का बच्‍चा भी स्‍कूल की लेबोरेटरी में प्रयोग करने के लिए उसको अवसर होना चाहिए। अगर शहर का बच्‍चा आधुनिक कम्‍प्‍यूटर के द्वारा टेक्‍नोलॉजी की शिक्षा प्राप्‍त कर रहा है, तो यह भी आवश्‍यक है कि गांव के बच्‍चे को भी उसी टेक्‍नोलॉजी के द्वारा प्रशिक्षित होने का अवसर होना चाहिए। उसको भी टेक्‍नोलॉजी में आगे बढ़ने का अवसर मिलना चाहिए।

अगर इंटरनेट… आज कभी-कभी गांव में टीचर रहने को तैयार नहीं, डॉक्‍टर रात में चला जाना चाहता है, लेकिन जो सुविधाएं शहर में है, वैसी अगर हम सुविधाएं… अगर नल से पानी आता है, optical fibre network है, इंटरनेट से जुड़ा हुआ है, चौबीसों घंटे बिजली है, चूल्‍हा जलाने के लिए गैस उपलब्‍ध है। अगर इन प्राथमिक सुविधाओं को भी अगर हम पहुंचाने में सफल होते हैं, तो एक quality of life में बदलाव आएगा वो गांव में भी लोगों को रहने में प्रेरित करेगा। अगर टीचर गांव में रहता है, डॉक्‍टर गांव में रहता है, सरकारी बाबू गांव में रहता है, तो गांव के जीवन में उसकी हाजिरी भी बदलाव का एक बहुत बड़ा कारण बनती है, और इसलिए महात्‍मा गांधी जी ने जो सपना देखा था, दीनदयाल उपाध्‍याय जी ने जो चिंतन किया था। नानाजी और जयप्रकाश जी लोगों ने जिन विचारों को ले करके जिया था इन्‍हीं आदर्श धारा को लेते हुए हम लोगों का भी यह प्रयास है कि हम ग्रामीण जीवन में बदलाव लाने के लिए महत्‍वपूर्ण दिशा में आगे बढ़े।

हमारे देश में संसाधनों के कारण आखिरी छोर के इंसान को हम कुछ नहीं दे पाते हैं। आज भारत सरकार में आने के बाद मैं इस बात से अब सहमत नहीं। हिंदुस्‍तान के आखिरी छोर के व्‍यक्ति को भी अगर उसके हक का है जो उसको पहुंचाना है तो देश के पास संसाधनों की कमी नहीं है। जो कमी महसूस होती है वो Good Governance की है, सुशासन की है। जिन-जिन राज्‍यों में Good Governance हैं, सरकारी मशनरी निर्धारित समय में टारगेटेड काम को पूरा करने की आदी हैं तो वहां पर बदलाव नजर आता है। आप देखिए मनरेगा, अब मनरेगा की एक विशेषता है, वो बना है गांव के लिए गरीब लोगों को रोजगार देने के लिए है। लेकिन अनुभव यह आता है कि जिस राज्‍यों में ज्‍यादा से ज्‍यादा गरीबी है, वहां पर मनरेगा का काम कम हो रहा है। लेकिन जिन राज्‍यों में कम गरीबी है, लेकिन Good Governance है वहां राज्‍य proactive है। ज्‍यादा से ज्‍यादा योजना बना देते हैं, ज्‍यादा लोगों केा जोड़ देते हैं और ज्‍यादा काम कर लेते हैं। और इसलिए ग्रामीण विकास के लिए Good Governance पर बल यह हमारी सरकारी का निरंतर प्रयास है। आज जो DISHA नाम का जो डिजिटल डेशबोर्ड आपके सामने प्रस्‍तुत किया गया वो एक प्रकार से Good Governance की दिशा का एक अहम कदम है। जिसके कारण सेंट्रली हर चीज को मॉनिटर किया जा सके, समय-सीमा में review किया जाए, अगर उसमें कमियां है तो उसको correct करने के लिए measure लिए जाए, और policy problem है तो policy correct किया जाए, अगर person problem है तो person को correct किया जाए, लेकिन DISHA इस प्रकार के डेशबोर्ड के कारण एक तो इसके मॉनीटरी की पूरी व्‍यवस्‍था हिंदुस्‍तान के सभी गांव के साथ जुड़ेगी। दूसरा भारत सरकार का जो विजन है, राज्‍य सरकार की जो योजनाएं है और हमारा जो Parliament का member व District इकाई है, यह सभी अगर विकास को एकसूत्र में करेंगे। priority होगी तो हमें इच्छित परिणाम जरूर मिलेगा। और इसलिए इस दिशा के माध्‍यम से जन-प्रतिनिधियों को सक्रिय रूप से जोड़ने का एक अहम काम भारत सरकार ने किया है, इस दिशा के द्वारा। Parliament का member जिला इकाई के साथ बैठ करके इन सारी योजनाओं का review करता है। priority वहां की आवश्‍यकता के अनुसार तय करता है। चीजें यहां से थोपी नहीं जाती है। और इस कारण कार्य में गति लाने की दिशा में एक बहुत बड़ी सफलता मिली है। लोकतंत्र की सफलता सिर्फ कितने लोग मत पेटी में मत डालने जाते हैं, वोट डालने जाते हैं। दुर्भाग्‍य से कई वर्षों तक हमने लोकतंत्र को यहां सीमित कर दिया कि पांच साल में एक बार जाना, डिब्‍बे में पर्चा डाल देना या बटन दबा देना। और फिर सरकार जो भी चुन करके आए जो भी बॉडी चुन करके आए, पंचायत चुन करके जो आए वो हमारा पांच साल में भाग्‍य तय करेगी। मैं समझता हूं कि लोकतंत्र को इतना सीमित नहीं सोचा जा सकता। लोकतंत्र का एक महत्‍वपूर्ण काम जरूर है कि अपनी पसंद की सरकार चुने, लेकिन लोकतंत्र की सफलता तब होती है जब जनभागीदारी से देश चले। जनभागीदारी से गांव की विकास यात्रा चले, जन- भागीदारी से नगर की विकास यात्रा चले और इसलिए जनता के साथ सरकार का संवाद अनविार्य होता है। जीवन का संवाद होना चाहिए। ऊपर से नीचे की तरफ correct guideline जानी चाहिए और नीचे से ऊपर की तरफ correct information जानी चाहिए। अगर यह two way channel perfect होती है तो योजनाएं, नीतियां और बजट allocation सहीं टारगेटेड जगह पर सारी चीजें हो सकती है और इसलिए आज एक मोबाइल एप के द्वारा ग्रामीण संवाद के द्वारा गांव का व्‍यक्ति अपने मोबाइल फोन के माध्‍यम से सही जानकारी ऊपर तक पहुंचा सकता है और ऊपर से सही मार्ग दर्शन last man Standing तक सीधा पहुंच सकता है और उसके कारण वहां स्‍थानीय इकाई जो सरकारी रहती है उन पर भी दबाव व्‍यक्‍त होता है, क्‍योंकि गांव का व्‍यक्ति कहता है कि बाबू आप कहते हो यह योजना, लेकिन मेरा मोबाइल फोन तो कहता है कि यह योजना है, आप बताइये कि हमारे यहां क्‍यों लागू नहीं हुई। यह जनता का जागरूक करने का एक बहुत बड़ा काम इस मोबाइल एप के द्वारा टेक्‍नोलॉजी का उपयोग करते, जनता के साथ संवाद बढ़ाते हुए, उसकी आवश्‍यकताओं को समझते हुए काम को दिशा देना, गति देना उसकी दिशा में हम प्रयास कर रहे हैं।

आज का भी देशभर में कई जगह उद्घाटन हुआ है। उसी प्रकार से agriculture विभाग का यही पर एक Phonemics Centre का भी एक बड़ा महत्‍वपूर्ण प्‍लांट का आज उद्घाटन हुआ है। हमारे देश में कृषि क्षेत्र और पशुपलन यह ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था के केंद्र बिंदु हैं। लेकिन साथ-साथ हमारे ग्रामीण जीवन में जो Artisans है उनका भी ग्रामीण अर्थकारण में बहुत बड़ा योगदान है। और इसलिए चाहे पशुपालन हो, चाहे खेती हो, चाहे हथकरघे का काम हो, हस्‍तकला से जुड़े हमारे लोग हो, उनको जोड़ करके हमने हमारी अर्थव्‍यवस्‍था के pillars को मजबूत करने की दिशा में हम काम कर रहे हैं। 2022 भारत की आजादी के 75 साल देश के किसानों की आय डबल करने की दिशा में एक संकल्‍प ले करके हम काम कर रहे हैं। एक तरफ किसान की जो input cost है उसकी जो लागत है उसको कम करना है। और दूसरी तरफ उसका उत्‍पादन जो है, उसको बढ़ाना है। अगर यह दोनों चीजों पर हम चलेंगे तो हमें टेक्‍नोलॉजी की मदद लेनी होगी। हमें आधुनिकता की तरफ जाना होगा। पशुपालन, पशु की संख्‍या भले कम हो, लेकिन दूध का उत्‍पादन ज्‍यादा हो, प्रति पशु दूध का उत्‍पादन बढ़े उस दिशा में जितना तेजी से आगे बढ़ेंगे वो ग्रामीण अर्थ जीवन आगे बढ़ेगा। हम आज दुनिया में chemical wax के बदले में शहद वाला wax जो है मोम है उसकी दुनिया में बहुत मांग बढ़ रही है। लोग chemical wax से मुक्ति पा करके honeybee का जो wax होता है, उसकी ओर जा रहे हैं। अगर हम गांवों में मधुमक्‍खी पालन को बढ़ावा दें, scientific तरीके से honeybee का पालन करना हमारे किसान के पशुपालन के साथ जुड़ जाए, अतिरक्‍त income की संभावनाएं बढ़ेगी और आज जो बहुत बड़ा market bee wax का है honeybee wax का है, chemical wax से लोग म‍ुक्ति चाहते हैं। भारत इसमें बहुत बड़े मार्केट को दुनिया में capture करने की ताकत रखता है और उस दिशा में हम आगे जाना चाहते हैं। हमारे यहां मत्‍स्‍य उद्योग हो, हमारे यहां पॉलिट्री फार्म्‍स हो, हमारे पशुपालन हो, हमारे यहां agriculture हो, उसमें भी टिंबर की खेती पशुपालन के साथ-साथ खेती के साथ-साथ अगर खेत के किनारे पर टिंबर की खेती करे, तो देश आज टिंबर import करता है। उससे बच जाएगा और देश का किसान टिंबर से इतनी कमाई कर पाएगा कि उसको कभी परिवार में संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा। पांच-दस साल मेहनत करने की जरूरत है अपने आप परिणाम आना शुरू हो जाते हैं तो ऐसी एक comprehensive integrated approach के साथ ग्रामीण विकास को आगे बढ़ाने की दिशा में हम काम कर रहे हैं। हम कुछ काम निर्धारित समय-सीमा में करने के इरादे से करते हैं। मुझे खुशी है कि पहले ग्रामीण जीवन के साथ एक गंदगी ग्रामीण जीवन का हिस्‍सा बन गई थी। लोग सहते रहे, उन्‍होंने यही मान लिया कि हमारे नसीब में यही लिखा हुआ है। और धीरे-धीरे जैसे जागृति आ गई लोगों में यह बदलाव की शुरूआत हुई। Open Defecation Free गांव की माताओं-बहनों के सम्‍मान का एक अभियान चला है। toilet बनाने का एक अभियान चला समय-सीमा में Toilet बनाने का, शौचालय बनाने का काम चला। और आज धीरे-धीरे स्थिति आई है, कल तक जिसे हम शौचालय कहते थे, आज हिंदुस्‍तान में उत्‍तर प्रदेश जैसे राज्‍यों ने उसका नाम इज्‍जतघर कर दिया है। शौचालय पर लिखा है इज्‍जघर। सचमुच में माताओं-बहनों की इज्‍जत के लिए इससे बड़ा कोई तोहफा नहीं हो सकता जो कि हम Toilet बनाने करके देते हैं। हमारी माताओं-बहनों को शौच के लिए खुले में जाना पड़े, सूरज ढलने तक इंतजार करना पड़े और सुबह सूरज उगने से पहले जा करके आना पड़े और दिन में कभी जाने की नौबत आई, उस मां-बहन को कितनी पीड़ा होती होगी यह जब तब उस संवेदना को अनुभव नहीं करेंगे, तब तक Open Defecation Free का आंदोलन सफल नहीं हो सकता है। और इसलिए जब भी शौचालय बनाने की बात आए। उन मां-बहनों की इज्‍जत की तरफ देखिए, उन मां बहनों की परेशानियों की तरफ देखिए आपको भी लगेगा बाकी काम छोड़ करके पहले भारत सरकार की योजना से मैं शौचालय बनाऊं और शौचालय का उपयोग करने की आदत डालूं।

ढाई लाख से अधिक गांव Open Defecation Free होने के लिए आगे आए। उन्‍होंने करके दिखाया। मैं उन गांवों को हृदय से बधाई देता हूं, उन्‍होंने मां-बहनों की इज्‍जत के लिए एक बहुत बड़ा कदम उठाया है। और मां-बहनों की इज्‍जत करने वाला गावं मेरे लिए पुण्‍य गांव होता है। मैं उसको नमन करता हूं, उन गांव वासियों को नमन करता हूं कि जिन्‍होंने इस महत्‍वपूर्ण काम को किया है।

स्‍वच्‍छता आज गांव का स्‍वभाव बन रहा है। गांव भी जिम्‍मेदारी को लेने लगा है। हमारे कई गांव आजादी के 70 साल बाद भी, 18 हजार गांव ऐसे, जो आज भी 18वीं शताब्‍दी में जीते हैं। न बिजली का खम्‍भा है, न बिजली का लट्टू है, न गांव में कभी बिजली देखी है। हमने बीड़ा उठाया, लालकिले से कहा एक हजार दिन में 18 हजार गांव में बिजली पहुंचाएंगे और मुझे खुशी है कि राज्‍य सरकारों ने भी उसमें हाथ बंटाया, भारत सरकार ने भी उसमें तेजी लाई और आज बहुत तेजी से 18 हजार गांव के उस लक्ष्‍य को पूरा करने की दिशा में हम आगे बढ़ रहे हैं, करीब-करीब 15 हजार गांव में बिजली पहुंच गई है। अब गांवों में बिजली पहुंच गई तो हम वहां अटकने वाले नहीं हैं। अब हमारा सपना है गांव हो या शहर घर हो या झोपड़ी हरेक के घर में बिजली का लट्टू होना चाहिए। 24 घंटे बिजली मिलनी चाहिए, बड़ा बीड़ा उठाया है। और इसलिए गरीब परिवारों को घर में कनेक्‍शन देने के लिए पहले पैसे देने पड़ते थे। हमने तय किया है मुफ्त में कनेक्‍शन देंगे, बिजली पहुंचाएंगे और मुझे विश्‍वास है कि एक बार बिजली आई तो घर के जीवन में भी बदलाव आएगा, बच्‍चों को शिक्षा के लिए सुविधा बढ़ेगी। घर का जीवन बदलेगा, 24 घंटे बिजली देने का निर्धारित लक्ष्‍य के साथ काम करने की दिशा में आज हम आगे बढ़ रहे हैं। हिंदुस्‍तान के ग्रामीण जीवन को बदलने के लिए हमारे जो ग्रामीण लोग उत्‍पादन करते हैं, उसको शहर में एक फैशन statement के रूप में उसे पल्वित-पुष्पित करने की जरूरत है। सामान्‍य व्‍यक्ति ने अपने हाथ से बनाई हुई चीजें अगर बड़े-बड़े घरों में उसका थोड़ा सा भी उपयोग हो जाए, ग्रामीण economy को बड़ी ताकत मिल जाएगी। दिवाली के दिये गांव में मेरे कुम्‍हार के बनाये हुए अगर खरीदेंगे तो उस मेरे कुम्‍हार के घर में दिवाली का दिया अपने आप जलने लग जाएगा। और यह हमारे लिए मुश्किल काम नहीं है। हम शहर में रहने वाले लोग हमारी पूरी जीवन की आवश्‍यकताओं को ग्रामीण अर्थकारण की दृष्टिकोण से आगे बढ़ाएंगे तो नयापन भी महसूस होगा। एक जीवन में संतोष का भाव भी आएगा और इसलिए शहर गांव के लिए एक Market Place बनना चाहिए। सिर्फ गांव से आने वाला अनाज शहर के लिए Market Place बने ऐसा नहीं, लेकिन शहर में उत्‍पादित हों। गांव में उत्‍पादित होने वाली हर चीज शहर के लिए Market Place के रूप में develop होती है, तो कभी भी मेरे देश में गांव गरीब नहीं रह सकता है, गांव में कोई परिवार गरीब रह सकता है और पंडित दीनदयाल उपाध्‍याय जी ने जो अंत्‍योदय का सपना देखा था उस सपने को हम पूरा कर सकते हैं। आज नानाजी देशमुख की जन्‍म शताब्‍दी में भारत सरकार की तरफ से एक पोस्‍टल स्‍टैम्‍प का भी लोकार्पण हुआ है। मुझे विश्‍वास है जब भी ये डाक पोस्‍टल स्‍टैम्‍प के साथ लोगों के यहां पहुंचेगी नाना जी के प्रति स्‍वभावित उत्‍सुकता जगेगी। कैसे-कैसे महापुरुष सिर्फ देश के लिए जीना यही जिनका मकसद रहा। गांव के जीवन में बदलाव लाना, किसी के लिए खुद जा करके प्रयोग करना और देश के सभी राष्‍ट्रपति नाना जी ने जब से गांव का शुरू किया उसके बाद जो भी राष्‍ट्रपति आए वो हमेशा नाना जी इस काम से जुड़े रहे। नाना जी के काम को सराहते रहे। नानाजी के प्रोजेक्‍ट देखने के लिए खुद जाया करते थे और ये काम नाना जी की कौशल्‍य की विशेषता थी। आज नाना जी की जन्‍मशती के दिन हिंदुस्‍तान भर के ग्रामीण जीवन के लोग आए हैं। भारत सरकार के सभी संबंधित सरकार जुड़े हैं और ग्रामीण जीवन में बदलाव लाने का एक संकल्‍प ले करके हम चले हैं। मुझे विश्‍वास है कि 2022 आजादी के 75 साल हर गांव वो भी एक संकल्‍प करें हर गांववासी वो भी एक संकल्‍प करें कि 2022 तक मैं मेरे गांव को ये दूंगा और मेरा गांव हम मिल करके हम देश को ये देंगे। अगर ये संकल्‍प ले करके चलेंगे मुझे विश्‍वास है हम ग्रामोदय के जिस सपनों को ले करके चले हैं उसको पूरा करने में सफल होंगे। मैं फिर एक बार आपसे आग्रह करूंगा यहां जो प्रदर्शनी लगी है, मैं अभी देखने गया था। जो आए हैं उनको भी कहने के लिए बहुत सारी बातें है, सफलता के साथ किए हुए अनुभवों का वहां निचोड़ है। मेरा भी मन करता था, बार-बार ठहर जाता था। देखने की, समझने की कोशिश करता था। मन को आनंद होता था कि गांव-गांव कैसे-कैसे प्रयोग हो रहे हर राज्‍यों में, कैसे-कैसे नये-नये प्रकार के initiative लिए गए हैं। गांवों में भी टेक्‍नोलॉजी ने कैसी अपनी जगह बनाई है। यह सारी चीजें देख करके मन को बड़ी प्रसन्‍नता हुई है। मेरा आपसे आग्रह है। आप कितने ही व्‍यस्‍त क्‍यों न हो, कितनी ही जल्‍दी ही जाने की क्‍यों न हो, इस प्रदर्शन की हर चीज को बारीकी से देखिए। आपके गांव में उसमें से क्‍या लागू हो सकता है। उसका जरा कागज पर लिख करके रखिए। किसका संपर्क करना वो भी नोट कर लीजिए और उसमें से कौन सी चीजें आपके गांव के लिए अनुकूल है। उसको आप अपने गांव में जा करके कैसे लागू कर सकते हैं। आखिरकार जब कोई चीज को देखते हैं तो उसकी ताकत का परिचय ज्‍यादा होता है। और इसलिए मैं आग्रह करूंगा कि आप सभी से दो-चार घंटे भी इस प्रदर्शनी में जरूर लगाइये, हर चीज को देखिए और अच्‍छी चीजों को अपने गांव में ले करके जाइये। मैं फिर एक बार नानाजी को प्रमाण करता हूं, बाबू जयप्रकाश जी को नमन करता हूं और सभी गांव से आए हुए मेरे जागरूक नागरिक भाईयों-बहनों को प्रमाण करता हूं और आप सबका बहुत-बहुत धन्‍यवाद करता हूं।

Source: PIB, अतुल कुमार तिवारी/हिमांशु सिंह /तारा

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