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We must bridge the many gaps and inequalities in our society: Vice President

Releases book ‘Bharat ke Rajneta – Ramdas Athawale’

The Vice President of India, Shri M. Venkaiah Naidu has said that we must bridge the many gaps and inequalities we have in our society. He was addressing the gathering after releasing the book ‘Bharat ke Rajneta – Ramdas Athawale’ authored by Shri Rajiv Suman, here today. The Minister of State for Social Justice & Empowerment, Shri Ramdas Athawale and other dignitaries were present on the occasion.

The Vice President said that Shri Ramdas Athawale has emerged as vocal leader for the emancipation of Dalits in modern society, adding that the book describes his accomplishments on crucial issues of national importance like, equal opportunities for all citizens, representation of women in Parliament and legislatures and protection indigenous tribal population.

The Vice President said that the book talks about Shri Athawale’s approach of peaceful resistance and protest that strengthens the democracy adding that it is important to identify glaring inequalities and take concrete action to bridge the gaps.

The Vice President said that proper representation of women of the country in Parliament and state legislatures should be a reality soon. He further said that the the government should pay attention towards India’s Tribal population and said that protection of De-notified, Nomadic tribes is very important. Their uplift and development is necessary for the preservation of the rich diverse Indian culture, he added.

The Vice President said that what is required is critical introspection, strong political will, committed implementation and transformation of mindset. He further said that violence, hatred and divisive politics can’t achieve any positive results. Only mutual respect and dialogue can, he added.

Following is the text of Vice President’s address in Hindi:

“भारतीय राजनेताओं के जीवन और उनके योगदान का उत्तम परिचय देने वाली पुस्तकशृंखला के वर्तमान अंक के प्रकाशन के लिए मैं संपादक श्री राजीव सुमन और “दी मर्जीनियलाइज्ड पब्लिकशन” को बधाई देना चाहता हूँ।

इस पुस्तक का अपने आप में ही एक विशेष महत्व है। वर्तमान समय में किसी आदर्श लोकतन्त्र में यह आवश्यक भी है कि ऐसी पुस्तकों का प्रकाशन हो जो राजनेताओं के चरित और उनकी विचारधारा को समाज के सामने लेकर आएँ।

प्रस्तुत पुस्तक महाराष्ट्र के सक्रिय राजनेता और समाज सेवक श्री रामसाद आठवले जी को उद्देश्य करके लिखी गई है। आठवले जी, पैंथर और नामांतर जैसे आंदोलनों के सक्रिय प्रतिभागी रहें हैं। मुझे खुशी है कि यह अंक उनके लिए समर्पित किया गया है। मुझे यह देखकर अच्छा लगा कि राजीव जी ने पुस्तक के आरंभ में अपनी भूमिका में लोकतंत्र के महत्व को उजागर किया है।

आठवले जी आधुनिक समाज में दलितों के उद्धार के लिए अग्रणी एवं मुखर नेता बनकर उभरें हैं। उनका सामाजिक समानता का विचार प्रशंसनीय है। उनका लक्ष्य है कि संपूर्ण मानवता का विकास हो न कि किसी विशेष जाति का, क्योंकि लोकतन्त्र किसी भेदभाव को स्वीकार नहीं करता है।

समाज में किसी प्रकार की असमानता देखकर उसका विरोध करना उचित है। पुस्तक में आठवले जी के साक्षात्कार में बताये गये बहुत महत्वपूर्ण विषय हैं। विशेषत: उनकी शांतिपूर्वक विरोध और आंदोलन की नीति लोकतन्त्र को सुदृढ बनाती है।

प्रस्तुत पुस्तक 80 और 90 के दशक की राजनीतिक गहमा-गहमी को जीवंत सा कर देती है। आठवले जी का यह विचार भी मन को भा जाता है कि किसी भी पार्टी की नीति और वैचारिक नीति अलग हो सकती है परंतु सरकार में आने के बाद उसकी नीति सरकार की नीति होनी चाहिए, संविधान की नीति होनी चाहिए। मुझे खुशी है कि आठवले जी देश के समग्र विकास की वर्तमान नीति का पुरज़ोर समर्थन करते हैं।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि महिलाओं के अधिकारों के संबंध में आपके विचार बहुत उदार हैं। आपके अनुसार समय की मांग के अनुसार संसद का विस्तार होना चाहिए और कैसे भी हो, वहाँ देश की महिलाओं का उचित प्रतिनिधित्व अवश्य होना चाहिए,आशा करता हूँ कि आपकी यह सकारात्मक सोच भविष्य में यथार्थ होगी।

आठवले जी की शिक्षा के राष्ट्रीयकरण की अवधारणा बहुत प्रगतिशील है, इसमें कोई संदेह नहीं है कि सरकार को समान शिक्षा और शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराने की ओर अपेक्षित कदम उठाने चाहिए।

पुस्तक में आठवले जी द्वारा दिए गए भाषणों और उनके द्वारा उठाए गए अनेक सामाजिक मुद्दों का विस्तार से वर्णन किया गया है। उन्होने महाराष्ट्र और समग्र देश में पिछड़ी जातियों के उन्नयन के लिए अनेक मुद्दे उठाए हैं। इसके अलावा उन्होने समय समय पर विभिन्न भ्रष्टाचार की घटनाओं का भी उजागर किया। उन्होने धार्मिक प्रभुत्व की अनुचित घटनाओं के खिलाफ भी आवाज़ उठाई।

यह सुंदर बात है कि उन्होने आधुनिक समाज में कुछ उच्च जातियों के अल्पसंख्यक होने के कारण उनकी दयनीय अवस्था को ध्यान में रखकर उन्हें भी उनकी जनसंख्या के आधार पर आरक्षण प्रदान करने पर बल दिया है।

अच्छी बात है कि आठवले जी इस कृषि प्रधान देश में किसानों की समस्या को भी उठाते हैं और देश के वास्तविक विकास का पक्ष लेते हैं।

आठवले जी की नीति के अनुसार देश की विमुक्त और घुमंतु जंजातियों की समस्याओं की ओर भी सरकार का ध्यान होना चाहिए। सच में उनका भारत की संस्कृति में अतुलित योगदान है। उनकी रक्षा से देश की संस्कृति की पूर्ण सुरक्षा का दावा किया जा सकता है।

मुझे खुशी है कि आठवले जी देश की अनेक कुरीतियों के प्रति अत्यंत सजग हैं और इस ओर सामाजिक कल्याण की पूर्ति के लिए सही दिशा में काम कर रहे हैं। ईश्वर उनके सदाशयों और सत्कार्यों में सफलता प्रदान करें और वे सदैव इसी प्रकार जनसेवा में लीन और उत्साहशील रहें।

राजीव जी को इस अनन्य पुस्तक के प्रकाशन हेतु, मेरा विशेष साधुवाद।“

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