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अगले लोकसभा चुनाव से पहले ‘असम समस्या’ का समाधान

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (उल्फा) के महासचिव अनूप चेतिया ने कहा कि हो सकता है कि उल्फा 2019 लोकसभा चुनाव से पहले ‘असम समस्या’ का अंतिम समाधान निकालने में सफल हो जाए। उन्होंने कहा कि राज्य में स्थाई शांति के लिए भाजपानीत सरकार को गंभीरता से परेश बरुआ गुट को वार्ता प्रक्रिया में शामिल करने पर विचार करना चाहिए। अनूप चेतिया उर्फ गोपाल बरुआ ने आईएएनएस से खास साक्षात्कार में कहा, “हमें उम्मीद है कि उल्फा और केंद्र के बीच अगले चरण की वार्ता औपचारिक होगी।”

चेतिया ने कहा, “हमलोग असम के मूल निवासियों के लिए भूमि अधिकार और स्थानीय लोगों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं। यह दो ऐसी मांगें हैं जिसे असम समस्या सुलझाने के लिए हम भारत सरकार के समक्ष रखेंगे। हमारा संगठन असम के मूल निवासियों के भूमि अधिकार को अरुणाचल प्रदेश, मेघालय और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों की तरह सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है।” उन्होंने कहा, “असम की समस्या विशिष्ट है। हमारे पास विविध जातीयता है और भारत के किसी भी राज्य में ऐसी समस्या नहीं है। इसके अलावा सदियों से असम में घुसपैठ की घटनाएं होती रहीं, जिससे समस्या और बढ़ी। ”

प्रतिबंधित संगठन उल्फा के परेश बरुआ गुट के वार्ता से दूर रहने के बारे में पूछे जाने पर चेतिया ने कहा कि राज्य में शांति तभी स्थापित होगी जब उल्फा के सभी धड़े और सभी उग्रवादी समूह वार्ता टेबल पर एक साथ आएंगे। केंद्र सरकार को यह मुद्दा गंभीरता से लेना चाहिए। उन्होंने कहा, “लोग मुझसे पूछते हैं कि क्या मैंने परेश बरुआ को बातचीत के लिए राजी करने का प्रयास किया है। मेरा जवाब ना है। मैंने अभी तक इस संबंध किसी भी प्रकार की पहल नहीं की है।”उन्होंने कहा, “अगर आप भारत सरकार और पूर्वोत्तर भारत में उग्रवादी संगठनों के बीच हुए शांति समझौतों को देखें तो आप यह महसूस करेंगे कि अबतक कुछ भी लागू नहीं किया गया है। मिजो नेशनल फ्रंट (एमएनएफ) ने हाल ही में मिजो शांति समझौते को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को ताजा ज्ञापन सौंपा है। एनएससीएन-आईएम के साथ वर्ष 1997 से शांति वार्ता चल रही है लेकिन सरकार अभी तक समझौते की रूपरेखा लोगों के सामने लाने में विफल रही है। मैंने एनएससीएन-के को भी वार्ता के लिए टेबल पर लाने का प्रयास करने के लिए कहा । मामले में स्पष्टता नदारद है, जिससे यह और पेचीदा बन गया है।”

उल्फा के अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा को वर्ष 2010 में बांग्लादेश में गिरफ्तार कर भारतीय अधिकारियों के सुपुर्द किया गया था। बाद में वह शांति वार्ता के लिए सहमत हुआ और उसे जमानत पर रिहा किया गया। लेकिन, उल्फा का ‘कमांडर-इन-चीफ’ परेश बरुआ अभी भी अपने कुछ साथियों के साथ म्यांमार में है और उसने अबतक सरकार की राज्य में शांति स्थापना की पहल पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। चेतिया को 21 दिसम्बर 1997 को बांग्लादेश में हिरासत में लिया गया था और नवंबर 2015 में उसके भारत प्रत्यर्पण से पहले वह वहीं के जेलों में बंद था। जमानत पर रिहा होने के बाद चेतिया ने भी शांति समझौते में शामिल हाने का निर्णय लिया।

जमानत पर रिहा होने के बाद चेतिया ने उल्फा द्वारा पहले की गई गलती पर सार्वजनिक माफी मांगी थी और कहा था कि वह राज्य के मूल निवासियों की भलाई के लिए काम करेंगे। राजनीति में शामिल होने के प्रश्न पर उन्होंने कहा, “इस समय मेरा राजनीति में शामिल होने का कोई विचार नहीं है। मेरे यहां आने के बाद मैं पूरे असम में घूम रहा हूं और इस बात को गंभीरता से महसूस कर रहा हूं कि क्षेत्रवाद यहां से समाप्त नहीं हुआ है। पूर्व की असम गण परिषद सरकार क्षेत्रवाद में विफल रही है लेकिन लोगों का अभी भी क्षेत्रवाद में विश्वास है।”

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