देश के अलग-अलग भागों से आए हुए, सहकारिता आंदोलन से जुड़े हुए आप सभी महानुभाव।
लक्ष्मण राव जी इनामदार जी के शताब्दी समारोह के साथ इस सहकारी आंदोलन में और अधिक गति मिले, नई ऊर्जा मिले और समाज के प्रति एक संवेदना के साथ सामान्य मानवी की समस्याओं के समाधान के लिए मिल-बैठ करके कैसे रास्ते खोज जाएं, साथ-सहयोग और सहकारिता के द्वारा समस्याओं का कैसे समाधान हो, इसके लिए आज आप दिनभर बैठ करके व्यापक चिंतन भी करने वाले हो।
हमारा देश बहुरत्ना वसुंधरा है। हर काल खंड में, हर भू-भाग में समाज के लिए जीने वाले, समाज को कुछ न कुछ दे करके जाने वालों की श्रृंखला अनगिनत है।
कोई कालखंड ऐसा नहीं होता है, कोई भू-भाग ऐसा नहीं होता है कि जहां आज भी समाज को समर्पित व्यक्तियों को हमें नजर न आते हों। कुछ लोग होते हैं जो टीवी के कारण, अखबारों के कारण, प्रचार माध्यमों के कारण, अपने कार्यकाल में मान-सम्मान के कारण लोगों के बीच चर्चा में रहते हैं; और चर्चा में रहते हैं तो कभी-कभी बहुत बड़े भी लगते हैं। लेकिन ये देश ऐसा है कि जिसमें बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जो कभी अखबार की सुर्खियों में नहीं होते हैं, टीवी पर कभी चमकते नहीं हैं। बहुत उनकी वाहवाही, मान-प्रतिष्ठा, खिताब जैसा कुछ होता नहीं। लेकिन एक मूक साधक की तरह समर्पित जीवन जीते-जीते ‘एक दीप से जले दूसरा दीप, जलते दीप हजार’, इस प्रकार से तिल-तिल जलते हुए शरीर के कण-कण को आदर्शों के लिए, मूल्यों के लिए खपाते हुए अपना जीवन जीते हैं। वे अनजान चेहरे होने के बावजूद भी, उनके द्वारा जो देश को मिलता है, इसका मूल्य कतई कम नहीं होता है। वकील साहब ऐसे ही एक जीवन में से थे।
आज कई लोगों को ये भी सवाल उठेगा कि हमने तो कभी नाम नहीं सुना था, आप शताब्दी मना रहे हो। मैं मानता हूं कि नाम नहीं सुना था, वही तो उनकी सबसे बड़़ी कमाल थी। अपने-आप को हमेशा पीछे रख करके; और मैं मानता हूं सहकारिता की सफलता का पहला मंत्र यही होता है कि स्वयं को जितना हो सके उतना दूर रखना और सबको मिला करके लोगों को आगे करना, वो सहकारिता का सबसे बड़ा मंत्र है।
उन्होंने व्यक्ति निर्माण में अपना जीवन खपाया, राष्ट्र निर्माण का एक रास्ता उन्होंने खोजा। ये मेरा सौभाग्य रहा, जीवन का बहुत कलाखंड उनके साथ बिताने का मुझे अवसर मिला। जवानी के अनेक वर्ष उन्हीं के मार्गदर्शन में काम करता रहा। और इसलिए मेरे लिए वकील साहब का जीवन एक नित्य-प्रेरणा का स्रोत रहा है। और जब मैं उनके जीवन पर एक किताब लिख रहा था; 25-30 साल पहले की बात है। और जब मैं बारीकियां देख रहा था तो मैं हैरान होता था कि मैं भी उनके पास रहता था, इतने सालों से रहता था। लेकिन बहुत सी बातें थीं, वो उनके जाने के बाद पता चलने लगीं, यानी जीवन को कैसे जिआ होगा, इसका ये एक उत्तम उदाहरण है। सादगीपूर्ण जीवन और फिर भी स्वयं को हमेशा चित्र में न आने देना; साथी आगे बढ़ें, साथियों की शक्ति आगे बढ़े, विचार को ताकत मिले, ये अपने आप में इस महान परम्परा की एक अनमोल रत्न के रूप में उन्होंने काम किया।
शताब्दी वर्ष के निमित्त कई कार्यक्रम होंगे। सहकारिता आंदोलन को एक नई ताकत मिलेगी। लेकिन आज जब हम वकील साहब के शताब्दी वर्ष निमित्त सहकारिता क्षेत्र में जो उनका योगदान था, उसको स्मरण करते हुए आगे बढ़ रहे हैं तब, आज दिनभर बैठ कर आप चर्चा करने वाले हैं। विश्व में best practices क्या हैं सहकारिता क्षेत्र की, इसकी चर्चा करने वाले हैं।
कृषि क्षेत्र में हम सहकारिता के माध्यम से कैसे आगे बढ़े, 2022, हमारे किसानों की आय दोगुना कैसे हो, ऐसी कौन सी चीजों को हम जोड़ें, ऐसी कौन सी गलत आदतों को छोड़ें ताकि हम हमारे कृषि जगत को भी हमारे ग्रामीण जीवन को आधुनिक भारत के संदर्भ में तैयार करें। विकास की उस दिशा में तैयार करें।
अब ये तो संभव नहीं है कि शहर तो आगे बढ़ जाएं और गांव को हम पीछे छोड़ दें। एक सम्यक विकास की आवश्यकता होती है। समान अवसर की आवश्यकता होती है। और सम्यक विकास, समान अवसर के मूल में सहकार्य मंत्र होता है। काल-क्रम से व्यवस्थाओं में दोष आते ही हैं। कुछ व्यवस्थाएं कालबाह्य हो जाती हैं। सहकारिता क्षेत्र से जुड़े हुए हर किसी को आत्मचिंतन भी करते रहना चाहिए। कहीं ऐसा तो नहीं है कि cooperative एक structure है। एक कानूनी व्यवस्था है, एक संवैधानिक दायरे में, नियमों के दायरे में कुछ बनी हुई एक चीज है। और उस चौखट में हम अपने-आप को बैठ जाएं तो हम भी cooperative बन जाते हैं। मैं समझता हूं तब तो बड़ी गलती हो जाएगी।
इतना बड़ा देश है। व्यवस्था की जरूरत पड़ती है, नियमों की जरूरत पड़ती है, structure की आवश्यकता होती है, do’s and dont’s की आवश्यकता होती है, वो तो जरूरी है। लेकिन सहकारिता उससे नहीं चलती है, सहकारिता एक spirit है। सहकारिता एक व्यवस्था नहीं है, एक spirit है। और ये spirit के लिए संस्कार आवश्यक हैं और इसलिए इनामदार जी बार-बार कहते थे, बिना संस्कार नहीं सहकार ।
आज कभी-कभी नजर आता है कि spirit कहीं ढांचे में खो तो नहीं गया है। क्या हमें सहकारिता के spirit को पुनर्जीवित करने के लिए, पुन- चेतनमंत करने के लिए, वकील साहब से बड़ी प्रेरणा क्या हो सकती है। और हम जितनी ज्यादा मात्रा में सहकारिता spirit को ताकत देंगे, तो व्यवस्थाएं अपने-आप कोई दोष होगा, तो भी शायद व्यवस्थाएं ठीक हो जाएंगी।
हमारे देश में सहकारिता पूरे आंदोलन का आधार ग्रामीण रहा है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि इसी कानून-नियमों के तहत जब urban cooperative की दुनिया खड़ी होने लगी, उसमें भी जब बैंकिंग क्षेत्र में, वो भी urban, उसके बाद उसके जो रंग-रूप बदलने लगे, उसके ताने-बाने बिखरने लगे, शंका-कुशंका का दायरा बढ़ता चला गया। आज भी ग्रामीण जीवन से जुड़ी हुई सहकारिता आंदोलन में उस पवित्रता का एहसास होता है।
किसान को भी लगता है कि हां ये मेरे लिए सही रास्ता है, और इस कार्य के सहकारिता आंदोलन के लिए समय देने वालों को भी लगता है, हां, मैं इसके माध्यम से गांव, गरीब किसान का कुछ कर रहा हूं। अब आप लोग इतनी चर्चा करने वाले हैं आज। एक छोटा सा विषय है मेरे मन में, जो मैं आपके सामने छोड़ना चाहता हूं, आप जरूर उस पर चर्चा करेंगे।
हमारे देश के किसान की कई समस्याएं हैं, लेकिन एक बात अगर हम देखें, किसान जो खरीदता है वो retail में खरीदता है और जब बेचता है तो wholesale में बेचता है। ये उलटा हो सकता है क्या, वो खरीदे wholesale में और बेचे retail में? तो कोई उसको लूट नहीं पाएगा। कोई बिचौलिए उसको काट नहीं खाएंगे। जिन लोगों ने डेयरी उद्योग का अध्ययन किया होगा, cooperative dairy, इस बात की तरफ आप ध्यान कीजिए, उसकी विशेषता है; उसमें किसान wholesale में खरीदता है, wholesale में बेचता है। देखिए ये, इसकी बारीकी है ये। डेयरी उद्योग की सफलता के मूल में वो खरीदता है wholesale में, बेचता है wholesale में। क्यों? पहले जो दूध उत्पादन करता था तो दस घर में एक-एक लीटर दूध बेचने जाता था, आज दस लीटर ले करके एक ही collection centre में चला जाता है, दूध देकर आ जाता है; मतलब wholesale में बेचता है। और वो खरीदता है तो भी डेयरी के द्वारा, उसका पशुआहार है, उसकी दवाइयां हैं, उसकी care करनी है पशु की; ये सारी व्यवस्था सामुहिक रूप में पूरे गांव को मिलती है।
उसका एक परिणाम आया कि डेयरी में उसको कोई न कोई ताकत मिलती रही, वो बचता रहा, अतिरिक्त आय का साधन बना। बाकी हर क्षेत्र में उसकी एक कठिनाई है। हम अगर यही, मान लीजिए वो private को wholesale में दूध देता तो इतनी कमाई नहीं होती। वो cooperative था और इसलिए उसकी कमाई का आधार बना। क्या हम ऐसी cooperative movement को खड़ा कर सकते हैं जो एक तो परम्परागत चली आ रही है। पहले पांच मडली थीं, वो लोग चलाते हैं, मैं दिखा दूंगा, मैं छठी बना लूंगा। एक नया सहकार का रूप बना है। लेकिन वो पांच चलती हैं, चलें। और दस ऐसे विषय हैं, कि जिसमें अभी किसी ने कदम नहीं रखा है, क्या हमें उन नए क्षेत्रों में जा करके सहकारिता के द्वारा समस्या का समाधान कर सकता हूं मैं? अनगिनत क्षेत्र पड़े हैं जिसमें आज भी सहकारिता क्षेत्र की हवा नहीं पहुंची है। जहां पहुंची है वहां स्पर्धा बहुत है; शुगर होगी स्पर्धा बहुत है, दूध है स्पर्धा बहुत है। जहां पर कुछ न कुछ है वहां स्पर्धा स्वाभाविक चीज है। लेकिन ऐसे बहुत क्षेत्र हैं, जिसमें एक पीढ़ी को खपना पड़ेगा, तब जा करके सहकारिता की ताकत बढ़ेगी।
क्या हम एक नई पीढ़ी को, नए spirit के साथ और खास करके ग्रामीण जीवन में आमूल-चूल परिवर्तन लाने के लिए सहकारिता आंदोलन में प्रेरित कर सकते हैं क्या? हमारे देश के स्वभाव को सहकारिता आंदोलन एकदम suit करता है। ये उधारी लिया हुआ विचार-व्यवस्था नहीं है, ये हमारे मूलभूत चिंतन स्वभाव-संस्कार के अनुकूल व्यवस्था है। और इसलिए इसका यहां पनपना बहुत स्वाभाविक है। इसके लिए आपको inject नहीं करना पड़ेगा। बाकी सारी व्यवस्थाएं अगर हम लाते हैं, अगर borrowed व्यवस्थाएं, तो एक foreign element के रूप में resistance रहता है। ये हमारी सहज प्राकृतिक व्यवस्था का हिस्सा है, हम मिल करके कर सकते हैं।
अब जैसे आज Neem coating urea का काम चल रहा है। किसानों को बहुत फायदा हुआ है इसके कारण यूरिया का हो हो-हल्ला बंद हुआ है। लेकिन ये neem coating करने के लिए नीम की फली को इक्ट्ठा करना, इक्ट्ठा करके उसका तेल निकालना, और तेल निकाल करके उसको यूरिया बनाने वाली फैक्टरी तक पहुंचाना; ये इतना बड़ा नया का निकला है। अगर हमारे गांव की महिलाओं की अगर सहाकारिता मंडलियां बन जाएं और ये neem coating के लिए जो नीम की जरूरत है, सिर्फ फली इक्ट्ठी करें जंगलों से, जहां नीम के पेड़ हैं फली इक्ट्ठी करें। अब देखिए एक नया entrepreneurship का क्षेत्र खुल सकता है, नई सहकारिता शुरू हो सकती है।
मैं हमारे इन डेयरी वाले जितने मित्र है, उनको बार-बार कहता रहता हूं कि आप किसानों को पशुपालन के लिए तो प्रेरित करते हैं। हमें आग्रहपूर्वक bee keeping के लिए भी जोर देना चाहिए, शहद की क्रांति करनी चाहिए; Sweet revolution लाना चाहिए देश में। सहकारिता आंदोलन के द्वारा ये मधु-क्रान्ति आ सकती है। शहद, किसान जैसे पशुपालन करता है, दूध उत्पादन करता है, वैसे अपनी 50 bee तय कर लें, और सालाना डेढ़-दो लाख रुपया आराम से वो उसकी कमाई बढ़ा सकता है। और जो डेयरी है, दूध लेने जाती हैं, साथ-साथ honey भी ले करके आ जाएं, शहद ले करके आ जाएं। उसके जैसे डेयरी में processing होता है, इसका processing हो, इसका मार्केट है। जो chemical wax होता है, अगर वो 100 रुपये भी बिकता है, तो bee wax है, 400-450 रुपये बिकता है, बहुत बड़ी मांग है। भारत में ही बहुत बडा मार्केट है उसका। लेकिन हमारे किसान आज भी उससे अछूता हैं। Bee में भी सैंकडों प्रकार हैं, और bee के कारण फसल को भी बहुत बड़ा लाभ होता है। और जो आज horticulture में काम कर रहे हैं, उनके लिए तो मधुमक्खी के ambassador का काम करती है, एक cattle engager का काम करती है। v कहने का तात्पर्य है कि ऐसे बहुत नए क्षेत्र हैं जिन नए क्षेत्रों में हम कैसे आगे बढें? अब हमारे समुद्री तट हैं। समुदी तट पर मछुआरे जो भाई-बहन हमारे। साल में पांच महीने करीब-करीब उनका काम बंद हो जाता है। Whether के कारण, वर्षा में समुद्र में जाना संकटकारक होता है इसलिए जाना बंद होता है। लेकिन sea-weed की खेती, हमारे यहां popular नहीं हो रही है। हमारे समुद्री तट पर, हमारे मछुआरे भाई-बहन अगर cooperative movement के द्वारा समंदर के पानी में ही sea-weed की खेती करें तो आज pharmaceutical के लिए वो बहुत बड़ा basic material के रूप में बहुत, laboratory में ये proven चीज है। ये pharmaceutical के लिए sea-weed का। मान लीजिए sea-weed का मार्केट नहीं मिला, सिर्फ उसको समंदर में, 45 दिन का उसका circle होता है, 45 दिन बाद वो उसकी फसल तैयार हो जाती है, हर 45 दिन के बाद एक फसल मिलती है। अगर वो 45 ऐसे समंदर के अंदर आपने फैला दिया तो हर दिन आप उसकी फसल ले सकते हैं। कुछ न करें, उसका सिर्फ जूस निकालें, और खेतों में जूस सिर्फ छिड़कने का काम करें। तो भी बहुत बड़े मार्केट से जमीन की रक्षा का बहुत बड़ा काम sea-weed के जूस से हो सकता है। कुछ नहीं करना है, बिना मेहनत का काम है। क्या cooperative movement के द्वारा समुद्री तट के हमारा मछुआरा भाई जो पांच महीने करीब-करीब उनका काम बंद हो जाता है, जिनके परिवार की महिलाएं दिन-रात घर में होती हैं, उनके लिए अवसर खोला जा सकता है।
मेरा कहने का तात्पर्य ये है कि हमारे यहां ग्रामीण अर्थकारण में बदलाव लाने के लिए सहकारिता आंदोलन छोटी-छोटी चीजों के द्वारा भी बहुत बड़ा परिवर्तन ला सकते हैं।
मैं आग्रह करूंगा कि वकील साहब ने जिस भाव तत्व को सहकारिता आंदोलन से जोड़ा है, जिस संस्कार तत्व को सहकारिता आंदोलन के साथ जोड़ा है, जिस संवेदनशीलता को सहकारिता आंदोलन से जोड़ने का आग्रह किया है, उन मूलभूत तत्वों को ले करके मूलभूत विचारों को ले करके, आज जो सहकारिता क्षेत्र से जुड़े बंधु यहां आए हैं, वे इसका और प्रचार-प्रसार करेंगे, और लोगों को जोड़ेंगे, और पूरी तरह हमारा सहकारिता आंदोलन सांच अर्थ में सामान्य मानवी के हकों की रक्षा करते हुए उसको equal partnership के साथ आगे बढ़ाने के काम आएगा।
इसी एक अपेक्षा के साथ वकील साहब का पुण्य स्मरण करते हुए, आप सबको हृदय से बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। धन्यवाद।
SOURCE: PIB, अतुल तिवारी/ शाहबाज़ हसीबी/सतीश /निर्मल शर्मा