in ,

वाल्मीकि जयंती और वाल्मीकि समाज

देश की आजादी की लड़ाई लड़ रहे हमारे पूर्वजों को अपने संघर्ष में उसी समय सफलता मिली जब, आजादी के लिए लडऩे वालों ने जन साधारण के सामने आजाद भारत में रामराज्य की स्थापना का लक्ष्य रखा। उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु भारतीय संविधान में भी लक्ष्य ‘राम राज्य’ ही रखा गया। अगर भारत की पावन भूमि पर राम न होते तो शायद आज भारत का स्वरूप ही कुछ और होता। भारत को राम के रूप में एक नायक देने वाले थे आदि कवि महर्षि वाल्मीकि! महर्षि वाल्मीकि के व्यक्तित्व बारे डा. मंजुुला सहदेव लिखती हैं,’ऐसा व्यक्ति जहां स्वयं किसी को पीड़ा नहीं देता है, वहां वह किसी जीव के प्रति हुए अन्याय को, उसकी पीड़ा को भी सहन नहीं कर पाता, चाहे उसे विधि के विधान की संज्ञा से अभिहित क्यों न किया जाए। तपोनिष्ठ कोमल-हृदयी महर्षि वाल्मीकि भी एक पक्षी की अकारण हत्या की पीड़ा से विह्वल हो उठे थे। उनका हृदय इस अन्याय को स्वीकार नहीं कर सका। प्रतीकार रूप में व्याघ को शाप देने पर भी उनका मन अशांत ही रहा।

इस अशांति की परिणति उनकी लेखनी के माध्यम से काव्य रामायण के निर्माण में हुई। उन्होंने अपने काव्य का पात्र उस व्यक्ति को बनाया जो जीवन पर्यन्त अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करता रहा। मानव होते हुए भी मानवीय स्तर से बहुत ऊपर रहा। यही कारण है कि उसके चरित्र ने सहस्त्राब्दियों से भारत की भूमि को ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व को प्रेरित किया है। परिणामस्वरूप राम ‘राजा राम’ न रह कर ‘परब्रह्म राम’ हो गए हैं। राम को इस स्तर पर पहुंचाने वाले महर्षि वाल्मीकि हैं। यदि महर्षि वाल्मीकि न होते तो राम-कथा वह रूप प्राप्त न करती जो आज है, क्योंकि मौखिक कथाएं एवं आख्यान साहित्य की कसौटी पर आ कर ही अमरत्व प्राप्त करते हैं। रामकथा के प्रथम प्रणेता महर्षि वाल्मीकि ने इस कथा के माध्यम से भारतीय साहित्य एवं संस्कृति को एक अनुपम देन दी है।’

महर्षि वाल्मीकि को अपना सब कुछ मानने वाले वाल्मीकि समाज की आज स्थिति क्या है, इस बारे दलित लेखक व बुद्धिजीवी भगवानदास लिखते हैं, ‘आज भारत में सही अर्थों में अगर कोई अछूत है तो वह भंगी हैं, जिन्हे दूसरी अछूत जातियां भी घृणा की नजर से देखती हैं। वह नीचों की नजर में भी नीचे हैं, अछूतों की नजरों में भी अछूत हैं और यह केवल गन्दे पेशें से सम्बन्धित होने के कारण नहीं हैं, क्योंकि गन्दे पेशों का मुकाबला किया जाए तो कई पेशें सफाई पेशें से भी अधिक गन्दे हैं और नीच हैं। चमड़ा रंगने या चमड़े के कुन्ड में काम करने वालों के मुकाबले में भंगी का पेशा कम गन्दा है। घृणा का कारण यह है कि गन्दा होने के साथ वह कमीन भी समझा जाता है और ”कमीन’ भी ऐसा जिस के यजमानों में अन्य नीचे माने जाने वाले लोग भी शामिल हैं। भंगी इस कारण अछूतों का अछूत बन जाता है और सब की नजरों में नीचा माना जाता है। धोबी, नाई, चमार, कुम्हार, बढ़ई, लोहार वह सब का कमीन हंै। उन की गन्दगी उठाते हैं। उनकी जूठन और उतरन स्वीकार कर लेते हैं। इसलिए सामाजिक तौर पर वह जातियां अपना दर्जा उस से ऊंचा समझती हैं। अगर भंगी सफाई का काम छोड़ दें तो ब्राह्मण की महानता खतरे में पड़ जाएगी, जातिवाद का आलीशान महल एक दम टूट कर नीचे गिर पड़ेगा। अगर ब्राह्मण सब के सर पर ऊंचे स्थान पर चढ़ कर बैठा है, तो भंगी सबसे निचले स्थान पर इस महल का बोझ सर पर संभाले खड़ा है। अगर वह जरा सी करवट ले ले तो यह महल खड़ा नहीं रह सकता। ऊंच-नीच, अछूत-छूत की सब दीवारें एकदम गिर जायेंगी।’

आज देश भर में ‘स्वच्छ भारत अभियान’ छिड़ा हुआ है। प्रधानमंत्री मोदी की देन है यह स्वच्छ अभियान, लेकिन इसकी सफलता मात्र भौतिक सफाई में नहीं छिपी। इसकी सफलता तो अपनी दृष्टि व अपनी मानसिकता में स्वच्छता लाने में ही है। जब तक समाज अपने दलित ही नहीं बल्कि दलितों में भी दलित को अपनाता नहीं, उन्हें उनके बुनियादी हक नहीं देता, तब तक स्वच्छता अभियान अधूरा ही रहेगा। वाल्मीकि समाज सही अर्थों में  दलितों में भी दलित है। देश में आरक्षण मिलने के बावजूद भी वाल्मीकि समाज को उसका लाभ नहीं मिल रहा। यह सभी के लिए चिंतन व चिंता का विषय होना चाहिए।

वाल्मीकि समाज की स्थिति को लेकर दलित चिंतक हरकिशन संतोषी अपनी पुस्तक ‘दलितों में दलित’ में लिखते हैं ‘आजादी के बाद श्रमिकों के लिए अनेक प्रगतिशील विधान गठित करके हमारी राष्ट्रीय सरकार ने उपेक्षित मजदूरों के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन और सुधार किए हैं लेकिन यह आश्चर्य और दुख की बात है कि सफाई मजदूर वर्ग जो श्रमिक जगत में सबसे अधिक दयनीय दशा में है और अछूतों में भी अछूत हैं, उन्हें इन प्रगतिशील विधान के लाभ से वंचित रखा गया है। हम पूछते हैं अपने देश के नेताओं से कहां हैं इनका मौलिक अधिकार? कहां हैं इनका समानाधिकार? कहां हैं इनका जीने का अधिकार? क्या इन्हें जीवित इसलिए रखा जाता है कि यह आजीवन मल-मूत्र अपने सिर पर ढोते रहें? क्यां इन्हें इसलिए जीवित रखा जाता है कि यह इन्सानियत को पाकीजगी देने के लिए खुद हैवानियत की जिदंगी बितावें? समाज की सुरक्षा के लिए तो यह मल-मूत्र ढोते ही हैं लेकिन ये उन दिलों का मैल कैसे साफ कर पाएंगे, जहां इनके लिए नफरत, दुत्कार और बेदिली है? इन्हें आजादी तो मिली लेकिन सपनों की। इन्हें जीने का हक तो मिला लेकिन अमानवीय रूप से। देश आजाद हुआ, गुलामी की जंजीर टूटी लेकिन क्या इनकी गुलामी की जंजीर टूट सकी? अगर यही हालत रही तो जब जमाने का इतिहास लिखा जाएगा तब भारत के इन असंख्य सफाई मजदूरों की दर्दभरी दास्तां भी होगी, जिन्हें कभी इंसाफ न मिला, न आर्थिक और न सामाजिक। फिर भी वह एक जीवित अस्तित्व है। इनकी घोर उपेक्षा अब और नहीं चल पाएगी। यह दूसरों का हक हरण करना नहीं चाहते हैं, लेकिन यह अपने हकों को भी बेदखल होने नहीं देना चाहते। जहां यह औरों को जीने देना चाहते हैं, वहां खुद भी जीना चाहते हैं एक सम्मानित इन्सान के रूप में। यह दूसरों को इज्जत देते हैं, लेकिन इसके लिए यह अपनी इज्जत की कुर्बानी भी देते हैं।

इस देशव्यापी समस्या को राष्ट्रीय आधार पर हल करने के लिए यह परमावश्यक है कि सरकार एक व्यापक संविधान की व्यवस्था करे जिसमें सफाई मजदूरों की सुरक्षा  और कल्याण की उचित व्यवस्था रहे और साथ-साथ उनके निरीक्षण और पालन करने वाली मशीनरी की भी व्यवस्था रहे। यह न केवल सफाई मजदूरों के लिए आवश्यक है बल्कि राष्ट्रीय प्रगति के लिए भी अनिवार्य है जिससे सफाई मजदूरों की हालत में क्रांतिकारी परिवर्तन और सुधार लाकर छुआछूत को जड़ से निकालकर फेंका जा सके और सामाजिक न्याय तथा लोकतंत्र की जड़ को मजबूत किया जा सके। इसके लिए जो कुछ करने की जरूरत है, उसके लिए सरकार हर प्रकार से सक्षम है।’

आजादी के 70 वर्ष बाद भी वाल्मीकि समाज को न्याय नहीं मिला। सफाई कर्मचारी की स्थिति तो आज भी बद्तर ही है। देश की सरकार व समाज को दलित वर्ग के प्रति आज भी मानवीय दृष्टिकोण से बहुत कुछ करने की आवश्यकता तो है ही, लेकिन दलितों में दलित वाल्मीकि समाज के प्रति तो तत्काल रूप से कुछ ठोस करने की आवश्यकता है।  सतही स्तर पर किए गए या किए जाने वाले प्रयासों से अब कुछ नहीं होने वाला। वाल्मीकि समाज स्वयं भी शिक्षा व आर्थिक क्षेत्र में जब तक आगे बढऩे के लिए स्वयं संघर्ष नहीं करेगा, तब तक उसे राजनीतिक क्षेत्र में भी कोई विशेष सफलता मिलने वाली नहीं है। शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र ही वाल्मीकि समाज के उज्वल भविष्य के आधार हैं। इन्हीं क्षेत्रों पर वाल्मीकि समाज को अपना ध्यान केन्द्रित करने की आवश्यकता है। महर्षि वाल्मीकि जयंती पर सभी को बधाई।

इरविन खन्ना, मुख्य संपादक, उत्तम हिन्दू

पाकिस्तान सरकार के भविष्य पर अमेरिका चिंतित, जताई ये इच्छा

President seeks sustained engagement with overseas community, tells diaspora in Ethiopia that government cares for them