in , ,

मदरसों में राष्ट्रगान

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के उस आदेश को जिस में कहा गया था कि उत्तर प्रदेश के मदरसों सहित सभी स्कूलों में राष्ट्रगान का गाना और राष्ट्र ध्वज का सम्मान करने को कहा गया था को मऊ के अलाउल मुस्तफा ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। याचिका में मांग की गई थी कि मदरसों में शिक्षा ग्रहण करने वाले छात्रों को राष्ट्रगान के लिए विवश न किया जाए। याची ने कहा था कि यदि छात्रों को ऐसा करने के लिए विवश किया जाता है तो यह देशभक्ति थोपना माना जाएगा। याचिका में यह भी कहा गया कि छात्रों को इस तरह के गीत गाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता, क्योंकि यह उनकी धार्मिक आस्था और विश्वास के विरुद्ध है। कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि याची ऐसा कोई तथ्य बताने में असफल रहा है कि राष्ट्रगान गाने से उनकी धार्मिक आस्था और विश्वास किस तरह से प्रभावित होगी। याची यह साक्ष्य भी नहीं प्रस्तुत कर सका कि मदरसे में पढऩे वाले छात्रों को इस पर क्या आपत्ति है।

हाईकोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रगान और राष्ट्रध्वज का सम्मान करना हर नागरिक का संवैधानिक कर्तव्य है। कोर्ट ने कहा है कि राष्ट्रगान राष्ट्रीय अखंडता, पंथ निरपेक्षता और लोकतांत्रिक भावना का प्रसार करता है। इसी प्रकार से राष्ट्रध्वज कपड़े और स्याही से बना एक टुकड़ा मात्र नहीं है, यह स्वाधीनता के लक्ष्य को हासिल करने का जरिया है। राष्ट्रगान गाना और राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा फहराना सभी शिक्षण संस्थाओं और अन्य संस्थाओं में अनिवार्य है।
कोर्ट ने संबंधित विभागों के प्रमुख सचिवों को आदेश दिया है कि स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस के अवसर पर सभी शिक्षण संस्थाओं में राष्ट्रगान करना और राष्ट्रध्वज फहराना सुनिश्चित कराएं, चाहे वह पंजीकृत हों या नहीं। कोर्ट ने याची को सलाह दी कि वह संवैधानिक दायित्व की शिक्षा ग्रहण करे जो सभी लोगों ने स्वीकार की है।

स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी मुस्लिम समाज का एक वर्ग राष्ट्रीय प्रतीकों और राष्ट्रीय गान व राष्ट्र ध्वज के प्रति वह सम्मान देने को तैयार नहीं जो देश के अन्य नागरिक देते हैं। राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान किसी भी देश और उसके नागरिकों की आन, बान और शान से जुड़ा होता है लेकिन कुछ नाकारात्मक सोच रखने वाले तथा केवल अपना स्वार्थ सिद्ध करने के लिए राष्ट्रहित व उसके मान के प्रति उदासीनता ही नहीं दिखाते, बल्कि धर्म की आड़ में उसका अपमान करने से भी नहीं झिझकते। घाटी में ही नहीं बल्कि देश के कई अन्य भागों में भी जहां तुष्टिकरण की राजनीति के परिणामस्वरूप पिछले 70 वर्षों में राष्ट्र विरोधी तत्वों का पनपने को अवसर मिला है, वह दादानुमा ढंग से देश विरोधी किसी भी अभियान का समर्थन ही नहीं करते बल्कि उसे संरक्षण भी देते हैं। देश की एकता और अखंडता को धर्म के नाम पर चुनौती देना एक गुनाह ही है, लेकिन केवल राजनीतिक स्वार्थों हेतु गुनाह करने वाले बच निकलते हैं। भारत एक लोकतांत्रिक देश है। इसमें सभी नागरिकों को एक समान अधिकार संविधान ने ही दिए हैं, लेकिन मुस्लिम समाज का एक छोटा सा वर्ग न तो संविधान अनुसार चलना चाहता है और न ही राष्ट्रहित की उसको परवाह है।

इस्लाम के नाम पर वह देश विरोधी नारे लगाने व राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान करने से कतराते नहीं। राष्ट्र से ऊपर धर्म को मानने वालों की आस्था भी बाहरी ही दिखाई देती है। मुस्लिम समाज का बुद्धिजीवी वर्ग भी उपरोक्त तत्वों के विरुद्ध बोलने को तैयार नहीं। हां दबाव के क्षणों में झुक अवश्य जाता हैं। राष्ट्रगान व राष्ट्र ध्वज को केवल हिन्दू समाज से जोड़कर देखने वाले तत्वों को समझना होगा कि राष्ट्र ध्वज व राष्ट्रगान किसी एक समुदाय का नहीं बल्कि पूरे राष्ट्र का है। इसको किसी धर्म, सम्प्रदाय या जाति से जोड़कर देखने वाले गलत हैं। उन्हें अपनी दृष्टि और सोच को बदलना होगा। धर्म की आड़ में अपना हित साधने वाले एक तरह से अपने धर्म और देश दोनों से एक प्रकार की गद्दारी ही कर रहे हैं।

हजारों वर्षों के संघर्ष के बाद भारत आजाद हुआ और उसका भी धर्म के नाम पर बंटवारा हो गया। आज एक बार फिर राष्ट्रीय गान और राष्ट्र ध्वज का विरोध मात्र धर्म के नाम पर करने वाले देश में एक बार फिर विभाजन के बीज ही बो रहे हैं जोकि एक जुर्म है। सरकार को चाहिए कि राष्ट्र स्तर पर एक ऐसा कानून बनाया जाए जो धर्म की आड़ में राष्ट्र विरोधी कार्य करने वालों विरुद्ध हो।

मुस्लिम समाज को भी आत्मचिंतन कर बदलते समय और परिस्थितियों को देखते आत्मचिंतन करने की आवश्यकता है। अंग्रेजों के समय तो मुस्लिम राजनीति केवल हिन्दुओं के विरोध पर ही टिकी थी और उसी के परिणाम स्वरूप देश का विभाजन हो गया। विभाजन के समय जो हुआ उसे  आज भी कोई नहीं भूल सका। भारत के संविधान बनाने वालों ने भविष्य में धर्म के नाम पर ऐसी मारकाट न हो इसीलिए सभी धर्मों को मानने वालों को एक साथ अधिकार दिए। आज अधिकारों का इस्तेमाल जब देश विरुद्ध होने लगा है तो सरकार और समाज को समाज के उस वर्ग को उसके देश प्रति कर्तव्य प्रति सचेत करने की आवश्यकता है। इस वर्ग की नकारात्मक सोच के कारण देश व समाज को कितना नुकसान हो रहा है और हो सकता है इस बारे जागरूक करने की आवश्यकता है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिया गया निर्णय उपरोक्त दिशा में उठा एक बड़ा कदम है। निर्णय की भावना को समझते हुए सभी को राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को पहचान उसको निभाना चाहिए इसी में सबकी भलाई है।

इरविन खन्ना, मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू।

करवा चौथ से पहले उजड़ा सुहाग

GST में बदलाव से 15 दिन पहले आई दिवाली : PM