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जीएसटी की दरें

मोदी सरकार द्वारा लाये माल और सेवा कर की दरें आज देश भर में चिंता का विषय बनी हुई हैं। जब माल और सेवा कर की घोषणा की गई थी तब कहा गया था कि देश के आर्थिक विकास तथा कर चोरी को समाप्त करने हेतु आवश्यक है। जन साधारण ने वित्तमंत्री अरुण जेटली द्वारा घोषित नई कर व्यवस्था का तब स्वागत ही किया था। लेकिन माल और सेवा कर की तकनीकियों और उसकी ऊंची दरों के कारण छोटे से लेकर बड़ा व्यापारी व उद्योगपति आज की तिथि में परेशान है। आये दिन व्यापार और उद्योग से संबंधित संगठन मोदी सरकार और विशेषतया वित्त मंत्री अरुण जेटली से जीएसटी के मामले में सरकार को व्यवहारिक होने की मांग करते दिखाई दे रहे हैं।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने भी संघ के स्थापना दिवस व दशहरा पर्व के अवसर पर नागपुर में संघ कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मोदी सरकार को माल और सेवा कर के मामले में आम आदमी की भावनाओं और मुश्किलों को समझते हुए व्यवहारिक होने की बात ही कही है। वर्तमान में व्यापार और उद्योग जगत माल एवं सेवा कर के कारण बहुत परेशान है, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई दिखाई नहीं दे रहा। जबकि धरातल की स्थिति यह है कि जीएसटी का विरोध शुरू हो चुका है और सरकार को पहले भी राजनीतिक झटके लग चुके हैं। पूर्व वित्त मंत्री जसवंत सिन्हा ने जेटली द्वारा लाये माल व सेवा कर की दरों के विरोध के साथ-साथ इसे अव्यवहारिक भी कहा है।

पिछले दिनों जेटली ने सीमा शुल्क, अप्रत्यक्ष कर और नॉरकोटिक्स के कार्यक्रम में बोलते हुए कहा है कि राजस्व की स्थिति बेहतर होने पर स्लैबों की दरें कम की जा सकती हैं, हमारे पास इसमें सुधार लाने की गुंजाइश है। ‘अनुपालन का बोझ भी कम किया जा सकता है। खासकर छोटे करदाताओं के मामले में। उन्होंने कहा, एक बार हम राजस्व की दृष्टि से तटस्थ बनने के बाद बड़े सुधारों के बारे में सोचेंगे। मसलन कम स्लैब। लेकिन इसके लिए हमें राजस्व की दृष्टि से तटस्थ स्थिति हासिल करनी होगी। फिलहाल जीएसटी 5, 12, 18 और 28 प्रतिशत की 4 कर स्लैब हैं। वित्त मंत्री ने कहा कि सरकार का हमेशा से यह प्रयास है कि अधिक उपभोग वाले जिंसों पर कर दरों को नीचे लाया जाए। जेटली ने कहा कि प्रत्यक्ष कर का भुगतान समाज के प्रभावी वर्ग द्वारा किया जाता है। अप्रत्यक्ष कर का बोझ निश्चित रूप से सभी पर पड़ता है। आर्थिक नीतियों के कारण अर्थव्यवस्था को लेकर चल रही बहस के बीच जेटली ने अपने आलोचकों को जवाब देते हुए कहा कि जो लोग देश के विकास की मांग करते हैं, उन्हें खुद योगदान करना चाहिए और ईमानदारी से कर भुगतान करना चाहिए।

किसी भी देश को चलाने के लिए राजस्व जरूरी है और इस राजस्व की प्राप्ति के बाद ही भारत एक विकासशील देश से विकसित अर्थव्यवस्था बन पायेगा। ऐसे समाज में जहां लोग कर भुगतान को महत्व नहीं देते रहे, अब लोगों को मानसिकता् बदली है और वे महसूस करने लगे हैं कि कर भुगतान किया जाना चाहिए। इसी वजह से अब सभी तरह के करों को समाहित करने की जरूरत है। करों के मामले में किसी तरह की कोताही की गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। देश में जीएसटी लागू होने के बाद नयी व्यवस्था से जूझ रहे उद्योग जगत का मानना है कि इस व्यवस्था को लेकर सरकार और उद्योग दोनों को ही सकारात्मक सोच के साथ ही जीएसटी रिटर्न दाखिल करने के मामले में प्रणाली को बेहतर बनाने के साथ-साथ अभी और जागरुकता की आवश्यकता है।

कटु सत्य यह है कि जिस दिन से माल और सेवा कर लागू हुआ है उसके साथ ही व्यापार और उद्योग जगत में मंदी का दौर शुरू हो गया और अब तो छोटे-छोटे दुकानदार मोदी सरकार की उपरोक्त नीति के कारण परेशान हैं। क्योंकि उसका व्यापार गिर चुका है। इस बात का प्रमाण यह है कि सरकार का राजस्व पिछले समय से कम आया है। सरकार सौ आश्वासन दे पर इस बात से सरकार इंकार नहीं कर सकती कि राजस्व प्रभावित हुआ है।

जेटली ने जन भावनाओं के दबाव में अब दरों के स्लैबो को घटाने की संभावना का जिक्र किया है। वित्तमंत्री जेटली ने पुरानी कहावत कि ‘मुर्गा पहले या अंडे की तर्ज पर कह दिया कि जीएसटी की दरें तभी घटेंगी जब राजस्व बढ़ेगा। वर्तमान स्थिति में राजस्व बढऩे की उम्मीद नहीं है इसलिए जो जेटली कह रहे हैं उस पर अमल होना भी दूर की कोड़ी है। उद्योग व व्यापार जगत में तो मंदी का दौर चल रहा है, ऐसे में राजस्व बढऩे की शर्त रखने का अर्थ है कि सरकार अभी किसी प्रकार की रियायत देने के लिए तैयार नहीं है, केवल समय ले रही है।

समय की मांग है कि सरकार बिना देरी के जीएसटी की दरों में कमी लाये विशेषतया 28 प्रतिशत की दरों को समाप्त ही कर देना चाहिए और जीएसटी की रिटर्न भरने में जितनी कठिनाइयों का सामना उद्योग व व्यापार जगत विशेषतया मध्य श्रेणी और लघु उद्योग व छोटे दुकानदार कर रहे हैं उनको देखते हुए रिटर्न भी तिमाही के आधार पर कर देनी चाहिए। मोदी सरकार अगर उपरोक्त दो कदम नहीं उठाती तो फिर मोदी सरकार की गिरती छवि को बचाना मुश्किल होगा और इस बात का खामियाजा मोदी सरकार को आने वाले विधानसभा चुनावों में देखने को मिल सकता है।

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