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पंजाब की शांति

जालंधर में पत्रकारों से बातचीत के दौरान पंजाब के मुख्यमंत्री ने कहा कि कनाडा के रक्षामंत्री सज्जन सिंह और न्यू डैमोक्रेटिक के प्रधान जगमीत सिंह ऐसी योजनाएं बना रहे हैं जिससे पंजाब की शांति भंग होने का खतरा है, पर पंजाब सरकार किसी कीमत पर पंजाब की शांति भंग नहीं होने देगी। कै. अमरेन्द्र सिंह ने ‘एक सवाल के जवाब में कहा कि कनाडा के रक्षामंत्री हरजीत सिंह सज्जन तथा एनडीपी के नए चुने गए नेता जगमीत सिंह पंजाब में जनमत संग्रह की बातें कर रहे हैं, उन्होंने कहा कि सज्जन व जगमीत सिंह गैर-जिम्मेदाराना बयान देकर पंजाब का माहौल खराब करना चाहते हैं। अगर दोनों नेता स्वयं को भारतीय मानते हैं तो उन्हें इस तरह के बयान नहीं देने चाहिए।

उन्होंने कहा कि पंजाब में उनकी सरकार किसी को भी शांति भंग करने की अनुमति नहीं देगी और न ही अस्थिरता का माहौल पैदा करने की आज्ञा दी जाएगी। उन्होंने कहा कि कनाडा के दोनों नेता पंजाब का माहौल खराब करने के लिए भड़काऊ बयान दे रहे हैं। पंजाब सरकार द्वारा राज्य में खालिस्तानी तत्वों को सिर नहीं उठाने दिया जाएगा। सज्जन सिंह व जगमीत सिंह जैसे नेता समझते हैं कि उनकी कनाडा में राजनीति पंजाब विरोधी बयान देकर ही चलती है। कैप्टन ने कहा कि सज्जन सिंह व जगमीत कभी भी आतंकवाद के दौर में पंजाब में नहीं रहे इसलिए उन्हें नहीं पता है कि राज्य में आतंकवाद के दौरान किस तरह से खालिस्तानी आतंकियों ने 35,000 निर्दोष पंजाबियों की हत्याएं कीं।

कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का अतीत में कनाडा आने पर विरोध भी उन्हीं शक्तियों व संगठनों ने किया था जो पंजाब को अलगाववादी आग में एक बार फिर झुलसाना चाहते हैं। कनाडा ही नहीं इंग्लैंड तथा कई अन्य देशों में विशेषतया पाकिस्तान में ऐसे शरारती तत्व बैठें हैं जिनको वहां की सरकारों का संरक्षण व समर्थन प्राप्त है और वह पंजाब में शांति भंग कराने का हर सम्भव प्रयास करते रहते हैं।

तस्वीर का दूसरा पहलू यह भी है कि एक छोटा वर्ग पंजाब में अलगाववादी संगठनों के साथ सम्पर्क में भी है और इनका प्रयास भी अलगाववाद की सोच को बढ़ावा देना ही है। सिख समाज की समस्या भी अन्य समाजों की तरह ही हैं। जैसे अन्य समाजों के शांतप्रिय लोग अपने कट्टरपंथी वर्ग के सामने मौन धारण कर लेते हैं, वैसे ही सिख समाज का शांतप्रिय और राष्ट्रवादी वर्ग भी अधिकतर समय चुप रहने में ही अपनी बेहतरी समझता है। पंजाब की राजनीति को भी उपरोक्त बात प्रभावित कर रही है। देश के संविधान में सिख धर्म की एक अलग पहचान है और सिख जिस अनुशासन का पालन करते हैं उस कारण भी उनकी पहचान अलग है। इसके बावजूद भी वह अपनी पहचान को लेकर आवश्यकता से अधिक सचेत हो व्यवहार कर रहे हैं। हिन्दू धर्म में आस्था रखने वालों ने हमेशा गुरुओं को अपना समझा है और आज भी समझते हैं।

गुरुओं को पहला बेटा समर्पित करने की परम्परा पहले अधिक थी चल आज भी रही है, लेकिन कम अवश्य हो गई है। मुस्लिम, ईसाई या किसी अन्य समाज ने गुरुओं को अपनी संतान अर्पित नहीं की है। गुरु गोबिंद सिंह द्वारा स्थापित खालसा पंथ से पहले सभी गुरु हिन्दू समाज से ही थे। खालसा पंथ की सृजना के बाद समय के साथ-साथ सिख समाज में आये परिवर्तन के साथ आज देश और दुनिया में सिखों की अपनी पहचान है। अध्यात्म स्तर पर भी देखें तो सिख गुरुओं ने जिस विचारधारा को अपनाया व आगे बढ़ाया उसका आधार तो भारतीय दर्शन तथा विचारधारा ही है। इसी कारण एक समय में देवताओं की मूर्तियां व गुरु ग्रंथ साहिब एक ही स्थान पर होते थे और हिन्दू और सिख दोनों ही वहां अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करने जाते थे। लेकिन मूर्तियों को लेकर जब विवाद उठा तो गुरुद्वारों से मूर्तियां हटा दी गई लेकिन विचारधारा तो मूल रूप से भारतीय ही है, इससे तो कोई इंकार नहीं कर सकता।

सिख समाज में धर्म और राजनीति साथ-साथ ही चलते हैं। वर्तमान स्थिति यह है कि कांग्रेस से सिख समाज को दूर करने के लिए धार्मिक नेतृत्व पहले ही बहुत कुछ कह और कर चुका है। अब देश की सत्ताधारी पार्टी भाजपा से भी दूरी बनाकर चलने के संकेत मिल रहे हैं। हिन्दी और हिन्दू से दूरी बनाकर चलने की नीति भविष्य में सिख समाज को कितना लाभ दे सकेगी इस बुनियादी बात पर सोचने की आवश्यकता है। विदेशों में बैठे लोगों क्या कर रहे हैं, उससे अधिक देश में बैठे लोग किस राह पर चल रहे हैं उस पर चिंतन करने की आवश्यकता है। कै. अमरेन्द्र सिंह सत्ता में है, पंजाब में शांति बनाये रखना उनकी पहली प्राथमिकता है लेकिन क्या पंजाब में रहने वाले पंजाबियों को पंजाब में शांति बनाये रखने की भी कोई जिम्मेवारी है कि नहीं इस बात पर आज विचार करने की आवश्यकता है। क्या पंजाब में रहने वाले उपरोक्त मुद्दे को लेकर चिंतन करेंगे?

-इरविन खन्ना, मुख्य संपादक, दैनिक उत्तम हिन्दू।

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